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यह गीत भी जब भारत मे पहली बार रेलगाड़ी से यात्राएँ शुरू हुई तब से यह गीत एक लोकतर्ज मे आम लोगों के बीच मे आया।यह गीत करीबन हर समाज के विवाह गीतों एक गीत के रुप उभर आया है।यह गीत इसी लहजे मे विशेष कर अधिक तर जाट,विशनोई,मारवाड़ी नाई,सुथार,मारवाड़ी मेघवाल आदी समाज मे गाया जाता है।यह साचोरी मालाणी री महिला बड़े लम्बे व धीमे लहजे मे गाती है जो अशल माड राग का स्वरूप है।लेकिन हमने अपनी पुरानी विवाह संस्कृति को बरकरार रखने के लिए थोड़ा सा साज बाज के साथ तेज गती से गा कर आम छत्तसकौमो मे विवाहिक तौर गाने हेतु सदा के लिए प्रेषित किया।