Swamiji's teaching is direct and powerful. I hear echoes of Swami Vivekananda in his teaching, who said "Anything that instills fear in the minds of people must be shunned. Anything that teaches fearlessness is the highest religion."
@prashantpalo56883 жыл бұрын
Jai gurudev
@csundry5 жыл бұрын
Thank you Swamiji for your words on the Truth... It was the 'Will of the Supreme' that gave us this opportunity to listen to you.. Thank you and all those who have made this video available to us all over the world..... 🕉🕉🕉🙏
@PeterCozijn4 жыл бұрын
Speechlessly internalising niddhidhyasana
@yogisurajnathgurubudhnathj845716 күн бұрын
गीता : एक सफेद झूठ, an arrent lie. ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् । स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥गीता 3/35 ॥ अर्थ : अच्छी प्रकार आचरणमें लाये हुए परधर्म से, गुणरहित स्वधर्म श्रेष्ठ है । स्वधर्म में मरना भी कल्याण कारक है, पर परधर्म तो भय उपजाने वाला है ।। अभिषेक नामक मित्र ने पुछा, गीता क्या है? गीता में धरम के नाम पर जो वास्तविकता है, मूलभूत फ्लाॅ अर फ्राॅड है, इसे देखते हैं - मेरा एक धरम, व किसी पराये का दुसरा धरम, यह बात धरम के नाम पर विचार पैदाइश परंपरा, जैसे वैदिक, शैव, वैष्णव, जैन, या कुरानिक, बिब्लिकल & so on, के संदर्भ में हो सकती है; या अपनी या दुसरे की किसी व्यावसायिकता के संदर्भ में हो सकती है। इसमें धरम के नाम पर अपनी या किसी और की परंपरा में, या व्यवसाय में, बंधे रहने की वकालत कियी है। और क्या है? कोई भी आदमी धरम के नाम पर चैतसिकतः कुरानिक, जैन, वैदिक क्रिश्चियन, नाथ, बौद्ध आदि परंपरा में बंधा रहे, कोई व्यावसायिकता अपने लिए बंधन कारक माने, कोई समझ है? व्यावसायिकता को आप चाहे एक या अनेक बार बदल दे, निर्वाह का कोई भी सम्यक साधन अपनाये, कुदरतन खुली बात है। किसी व्यवसाय में किसी के नेक या गलत व्यवहार को धरम का एक अंग कहे, यह समझा जा सकता है; मगर किसी व्यवसाय को ही किसी का धरम कहे यह तो एक धरमनाम बेवकूफ़ी वा फ्राॅड से ज्यादा नहीं है। देखे कि, अपने वर्णाश्रमवाद के लिए गीता यह मानसिक मॅनेजमेंट के साथ कैसी कुटिल किताब है। और गीता में इधर उधर से कोई पश्यंति, विपश्यना, स्थितप्रज्ञ जैसी बुद्ध आदि से टैगिंग है, तो इसका मतलब यह नहीं कि इस बाबत गीता में मौलिक समझ की बात है; इस बात को आप बोधि की अगनि में, या अनालिसीस करके भी देख सकते हैं। धरम का अपना महान अस्तित्व है । धरम सार्वजनीन होत है, मेरा या आपका अलग नहीं होत है। और यह समझना काॅमन सेंस की बात है। संबंध के आइने में छह इंद्रियों में से किसी विग्यान से किसी चीज के साथ संपर्क, हर किसी की अपनी चैतसिक रेकार्डिंग/संग्या से उस इंद्रिय संपर्क की पहचान व मुल्यांकन, व तदनुसार वेदनां-भावनां का जगना यह सार्वजनीन बात है, सत धरम की बात है, कि जिसका भारतीय, चाइनीज, इसाई, मुस्लिम, या किसान, डाक्टर आदि से कोई मतलब नहीं है। और उस वेदनां-भावनां के प्रति चेतन अचेतन राग-द्वेष, या चेतन हो दरसण-ध्यान, यह इसी पल में जीने की कला है, जो धरम की सार्वजनीनता से नियमित है। ऐसे शुद्ध दरसण से धरम की, जीवन की, अनंत गहराइयां खुलने का रास्ता साफ है। अहंभाव द्रष्टा क्या है? भयानुरागदि दृश्य क्या है? काल चेतना, समाधि चेतना, शुन्य चेतना क्या है? दरसण की अगनि में बोधि का जगना व चित्त अवधूनन क्या है? दुख गामिता व दुख निर्जरा क्या है? ऐसे सार्वजनीनता धरम की बात है। भंगी-बामन, क्षत्रीय-शुद्रादि विचार पैदाइश, मानव समाज के प्रति बुद्धिभ्रम करनेवाली, लोक-परलोक आस धरमनाम सामंती धंधा व राजभोग जुगाड़ के साथ वैदिकधंधा चलाएं, किसी किताबी धर्मांध बातों को ही धरम बनाए या माने, ऐसे में बहे, भ्रमित बन क्षत्रियादि की आस लगाये, तो ये धरमनाम मुर्खताएं तो है ही, इस सामाजिक गुनहगारी का लांछन भी है ना? सारी गीता ऐसे फ्लाॅ व फ्राॅड से भरी पड़ी है। आंखे खोलकर देखे। कुदरत को भ्रमित होना मंजूर नहीं । अंधेरे में भी कांटे पर पांव पडने से कांटा चुभता है । और चेतना में झूठ प्रोपागंडा से धंसे कांटे तो बडा दुख । जागत रहे सदा सनातन धरम की बानी। जागत रहे बुद्ध गोरख सै ध्यानी ग्यानी।। सनातन = कुदरतन, अपने आप से, विचार की पैदाइश नहीं, eternal, laws of nature at all levels by itself. और सनातन धरम की बात बुद्ध बारिकि के साथ स्पष्ट रूप से करत है - ". . . एस धम्मो सनंतनो। 🌾 - योगी सूरजनाथ।