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विश्वम्भर (अर्थात, चैतन्य ) का
जन्म/प्रकटीकरण 27 फरवरी, 1486 को फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन
चंद्र ग्रहण की शुरुआत में नवद्वीप शहर (नवद्वीप, पश्चिम बंगाल के शहर
का एक उपखंड) में श्रीमती शची देवी के पुत्र के रूप में हुआ था, जो तत्कालीन
मुस्लिम शासित बंगाल में संस्कृत शिक्षा का केंद्र था
Iचैतन्य महाप्रभु के अनुयायी उन्हें श्रीकृष्ण का अवतार
माना जाता है
कुछ तो चैतन्य महाप्रभु को श्रीकृष्ण की
प्रेमावतार यानि श्री राधाजी का अवतार, मानते हैं.
भक्त चैतन्य महाप्रभु की गिनती भक्तिकाल के
प्रमुख कवियों में होती हैं
बाल्यावस्था में महाप्रभु को निमाई कहा जाता
था। चैतन्य महाप्रभु वैष्णव धर्म के प्रचारक, महान संत, कवि और वैदिक
आध्यात्मिक नेता थे. उन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की नींव रखी और
संकीर्तन आंदोलन की शुरुआत की थी.
चैतन्य महाप्रभु का जन्म बहुत ही चमत्कारी था.
आमतौर पर 9 महीने गर्भ में रहने के बाद किसी शिशु का जन्म होता है. लेकिन चैतन्य
महाप्रभु अपनी मां के गर्भ में 13 महीने रहे थे. चैतन्य महाप्रभु के माता-पिता को
पहले आठ कन्याएं हुई हुई थीं. लेकिन पैदा होते ही एक के बाद एक सभी की मृत्यु हो
गई. इसके बाद एक पुत्र हुआ, जिसका नाम विश्वरूप रखा गया.
विश्वरूप जब दस बरस का हुआ तब उनके माता-पिता एक
और पुत्र हुआ. (बलराम भ्राता)
यही दृष्टि है दोनों श्रीकृष्ण और चैतन्य
महाप्रभु के जन्म
से संबंधित समानता ये
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