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भारतीय इतिहास के अनेक ऐसे पहलुओं को जान-बूझ कर अनदेखा किया गया है, जोकि हमारे साम्राज्यों की निर्मितियों और स्थायित्व के सबसे बड़े कारण रहे हैं। आज का विमर्श विजय नगर साम्राज्य के संस्थापक हरिहर और बुक्का जैसे महान, मेधावी और महत्वाकांक्षी शासकों पर नहीं अपितु उन्हें कुंदन बनाने वाले उनके सहयोगी, गुरु और कालांतर में महामंत्री माधवाचार्य विद्यारण्य पर केंद्रित है। विद्यायरण्य को दक्षिण भारत का चाणक्य कहा जाता है; अपने अपने समय के दो महति विद्वानों की ऐसी तुलना सार्थक प्रतीत होती है।