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माना जाता है कि आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर हुआ था।
आदि शंकराचार्य ने 8 साल की उम्र में सभी वेदों का ज्ञान हासिल कर लिया था। इनका
जन्म दक्षिण भारत के नम्बूदरी ब्राह्मण वंश में हुआ था।
माना जाता है कि 820
ईस्वी में सिर्फ 32 साल की उम्र में शंकराचार्य जी ने हिमालय क्षेत्र में समाधि ली
थी। हालांकि शंकराचार्य जी के जन्म और समाधि लेने के साल को लेकर कई तरह के मतभेद
भी हैं।
आदि शंकराचार्य ने बनाए देश में चार धाम आज इसी वंश के ब्राह्मण बद्रीनाथ मंदिर के रावल होते हैं।
ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नम्बूदरी ब्राह्मण ही बैठते हैं।
आदि शंकराचार्य ने
दशनामी संन्यासी अखाड़ों को देश की रक्षा के लिए बांटा। इन अखाड़ों के संन्यासियों
के नाम के पीछे लगने वाले शब्दों से उनकी पहचान होती है। उनके नाम के पीछे वन,
अरण्य, पुरी, भारती, सरस्वती, गिरि, पर्वत, तीर्थ, सागर और आश्रम, ये शब्द लगते
हैं। आदि शंकराचार्य ने इनके नाम के मुताबिक ही इन्हें अलग-अलग जिम्मेदारियां दी।
इनमें वन और अरण्य नाम के संन्यासियों को छोटे-बड़े जंगलों में रहकर धर्म और
प्रकृति की रक्षा करनी होती है। इन जगहों से कोई अधर्मी देश में न आ सके, इसका
ध्यान भी रखा जाता है। पुरी, तीर्थ और आश्रम नाम के संन्यासियों को तीर्थों और
प्राचीन मठों की रक्षा करनी होती है।
इस
वक्त 2024 ईसाई वर्ष चल रहा है। विक्रम संवत इससे 57
वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था। वर्तमान में विक्रम संवत 2081 चल रहा है। इस वक्त कलि संवत 5125 चल रहा है। युधिष्ठिर संवत कलि संवत से 38
वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ था। मतलब इस वक्त युधिष्ठिर संवत 5163 चल रहा है।
आदि शंकराचार्य ने चार
मठों की स्थापना की थी। उत्तर दिशा में उन्होंने बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ की
स्थापना की थी। यह स्थापना उन्होंने 2641 से 2645 युधिष्ठिर संवत के बीच की थी।
इसके बाद पश्चिम दिशा में द्वारिका में शारदामठ की स्थापना की थी। इसकी स्थापना
2648 युधिष्ठिर संवत में की थी।
इसके बाद उन्होंने दक्षिण में श्रंगेरी मठ की स्थापना भी 2648 युधिष्ठिर संवत में
की थी। इसके बाद उन्होंने पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में 2655 युधिष्ठिर संवत
में गोवर्धन मठ की स्थापना की थी। आप इन मठों में जाएंगे तो वहां इनकी स्थापना के
बारे में लिखा जान लेंगे।
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