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शीतला
सप्तमी और शीतलाष्टमी व्रत मनुष्य को चेचक के रोगों से बचाने का प्राचीन काल से
चला आ रहा व्रत है। आयुर्वेद की भाषा में चेचक का ही नाम शीतला कहा गया है। अतः इस
उपासना से शारीरिक शुद्ध, मानसिक पवित्रता और खान-पान की सावधानियों का संदेश
मिलता है।
चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को
शीतला माता की पूजा की जाती है कहि कहि यह पूजा चैत्र कृष्ण पक्ष सप्तमी तीथि को मनाया जाती है I मान्यता है कि शीतला माता
बच्चों की सेहत की रक्षा करती है और धन-संपत्ति का आशीर्वाद देती हैं I शीतला
माता देवी की तरह होती है जो गधे पर सवार होती है और नीम के पत्तों की माला का
श्रृंगार करती हैं I
शीतला अष्टमी को बसौड़ा नाम से भी जानते
हैं। क्योंकि इस दिन मां शीतला को बासी
भोजन का भोग लगाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता बै कि मां शीतला की
विधिवत पूजा करने से शरीर में शीतलता आने के साथ हर रोग से छुटकारा मिल जाता
है।
शीतला अष्टमी के दिन चूल्हा नहीं जलाना चाहिए।
इस दिन बासी भोजन ही करना चाहिए।
मां शीतला को ताजा भोजन का बिल्कुल भी भोग न लगाएं, बल्कि शीतला सप्तमी के दिन
बनाए गए भोजन का ही सेवन करना
चाहिए ।
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पाठक गण को चाहिये की प्रत्येक पूजा अराधाना ऐवम प्रयोग के पशच्यात, उप्युक्त शांति पाठ अवश्यमेव करे जिससे कि जो वातावरण मै आई अनावश्यक बद्लाव, जो आपकि अराधना से उत्पन्न हुये है, वो शांत हो जाये ।
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