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जब अहमदशाह अब्दाली ने मथुरा पर आक्रमण किया तो भरतपुर के महाराजा सूरजमल जाट ने राजकुमार जवाहरसिंह को 10 हजार जाट सैनिकों के साथ मथुरा की रक्षा करने भेजा। ये जाट वीर भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली की रक्षा करते हुए न्यौछावर हुए। महाराजा सूरजमल की बुद्धिमानी से अहमदशाह अब्दाली भरतपुर राज्य में लूट नहीं कर सका।
जिस समय जोधपुर, जयपुर, मेवाड़ और बीकानेर आपस में संघर्षरत थे तथा मराठों और पिण्डारियों का शिकार बन रहे थे उस समय जैसलमेर का भाटी राज्य भयानक आंतरिक कलह में उलझा हुआ था। मरुस्थलीय एवं अनुपजाऊ क्षेत्र में स्थित होने के कारण मराठों और पिण्डारियों को इस राज्य में कोई रुचि नहीं थी। इस काल में एक ओर राज्य के दीवान और सामंतों के मध्य शक्ति परीक्षण चल रहा था तो दूसरी ओर जैसलमेर के शासक मूलराज (द्वितीय) का अपने ही पुत्र रायसिंह से वैर बंध गया था।
महारावल मूलराज ने माहेश्वरी जाति के टावरी गोत्र के मेहता स्वरूपसिंह को अपना दीवान नियुक्त किया। मेहता स्वरूपसिंह कुशाग्र बुद्धि वाला एवं चतुर मंत्री था। महारावल ने राज्य का सारा काम उसके भरोसे छोड़ दिया। उस काल में जैसलमेर राज्य में आय के साधन इतनी सीमित थे कि राज्य के सामंत अपने ही राज्य के दूसरे सामंत के क्षेत्र में लूटपाट करते थे।
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