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यह भजन मोहमाया से विरक्त करने वाला है।इस भजन मे वैराग्य भाव जाग्रत होता है।कवि का भाव रस यह है कि हे हंस(जीवात्मा)तूं इस संसारिक मोहमाया व कुटम्ब परिवार से प्रेम करता है ,तूं अपना मान कर बैठा है वो अपना नही है।अपना है उन से प्यार कर यानि अमरत्व की ओर प्रस्तान कर इस दुनिया मे दूसरा अपना कोई नही है।जेसे इस धरती पर बड़े बड़े राजा महाराजा सिद्बपुरुष अवतारी अवल्यापुरुष महा योधा भी इस धरती पर नही टिक सके।वै मोत के ग्रास बने तब उनके धन बल पुत्र पति परिवार कोई काम नही आया सभी को एक दिन यहाँ से जाना पड़ा ।ओर जा रहे है आगे भी जायेगा ।क्यो कि यह जग धारा ही झूठी मोह की लहर है यह आखिर सपने की भांती है।एक दिन सभी मर मिटने वाले है।अमर नाम एक प्रमात्मा का नाम है उनसे प्यार कर तूं अमर लोक मे जा कर ।निवासकर यानि अपने को पहचान,दूसरा कोई नही है ।सब कुछ है एक तूं ही परम सत्ता का स्वरुप है।