अंजुम भाई, फ्रीडम और पाबंदी शब्द के इर्दगिर्द ही सारा साक्षात्कार रहा 😮
@seemaagrawal3064Ай бұрын
जिस बात को ग़लत समझा उसी के साथ रहीं अपने समय में और आज भी उसी तौर की मुरीद हैं। कुरीतियों को लिख भर देने से वो नहीं बदलेंगी। उनके विरोध में तार्किकता और प्रतिबद्धता के साथ समक्ष आना पड़ेगा।फिर भी मेहरूननिसा जी ने जिस ईमानदारी और सच्चाई से वस्तुस्थितियों को उजागर किया उसके लिए उनको सदैव धन्यवाद। साहित्यकार समाज को विमर्श के लिए मुद्दे दे या भी ज़रूरी है।
@ankitashambhawi3289Ай бұрын
"मैंने देखा है ज़िंदगी में औरत बहुत परेशान रहती है", "आदमी औरत को कभी सामने नहीं आने देना चाहता, वह नहीं चाहता कि वो दरवाजे पर खड़ी हो जाए...", "विद्रोह करके कहाँ जाएगी!", "हमें पता था कि ये हमारा घर है और घर के सारे कानून-कायदे सहते हुए ही हमें रहना और जीना है..." बहुत गहरी, मार्मिक बातें जो हर स्त्री की नियति है, भोगा हुआ यथार्थ है। बहुत सार्थक बातचीत मेहरुन्निसा जी और अंजुम जी के बीच।
@pragatisingh4975Ай бұрын
Insan jish kal paristhiti me pal aya ho ushki chhap ho hi jati hai ushme ... 😊
@khidki1196Ай бұрын
पहली बार लगा अंजुम फेल हो गए.
@dr.hemantkumarsikar5402Ай бұрын
लेखन मेहरुन्निसा जी में अनायास उगा था, बिना किसी जतन के। वैचारिकता दुनियाभर के लेखकों, विचारकों, दार्शनिकों के अध्ययन, विमर्श और चिंतन से परिपक्व होना था, वह परिवेश उन्हें मिला नहीं। बंदिशों से बगावत करने का बीज उनमें ज्यादा था नहीं । एक सरल, सुशील, भावुक और आत्मीय लेखिका को प्रणाम।🙏🏼
@ashokseth2426Ай бұрын
आप ने अपनी बेटी को आगे बढ़ाया आप बधाई की पात्र हैं मेहरूनीसा जी
@vjaindatiafulАй бұрын
एक माँ का साक्षात्कार । जो विचार से ज्यादा भावना को महत्व देती हैं। अनेक प्रश्न अनुत्तरित रहे इसलिए अगले साक्षात्कार की प्रतीक्षा रहेगी।
@pandepragya30Ай бұрын
मेहरुन्निसा जी पाबंदियों से आक्रांत लगीं, इतनी अधिक कि उसके खिलाफ भी न बोल पाईं। लगा जैसे उन्होंने अपने को एक सेल में बंद रख कर बात की। फिर भी उन्हें यहां देखना ही बहुत। अंजुम जी भी पाबंदियों में रहकर ही बोले। 🙂
@JhasushantАй бұрын
She is very honest. No sugarcoating or whitewashing of words! Maybe many people thinks of her as conservative, but she is reflection of a particular time and space.
@dilkhushmeenadu2000Ай бұрын
आपने अच्छा साहित्य रचा है और आपने बेटी को IPS बनाया है यही आपके लेखन की सफलता हैं, आप खुश और स्वस्थ रहें और यूं ही लिखती रहो ❤🎉🙏
@kamlasharmam8688Ай бұрын
मैंने इनकी कहानियां पढ़ी हैं बहुत अच्छा लिखती हैं ..साथ में सरलता की प्रतिमूर्ति भी बहुत सुंदर साक्षात्कार..!
@Nirmala1567-ijyАй бұрын
Ek line aapane Kahi ki vidroh karke jayegi Kahan striyan . Yah baat hamen bahut hi reality lagi. Kyunki ham vidroh to man hi man karte hain lekin FIR ant mein hamen sochte Hain ki aakhir ham jaaye Kahan kahan rahenge ham ISI ghar mein to rahana hai
@गिरिजाकुलश्रेष्ठАй бұрын
वाह यह साक्षात्कार बहुत ही प्यारी लेखिका का है। समरलोक के द्वारा इनको जाना। अब और जानने मिलेगा ।
@avagallery6599Ай бұрын
इंतजार खत्म हुआ इस साक्षात्कार के लिए बधाई अंजुम जी
@Jyotiyadav-ot7fjАй бұрын
जैनेन्द्र के त्यागपत्र की मृणाल याद आ रही - समाज को तोड़ कर नहीं समाज में टूट कर हम बनना चाहते हैं।"समाज रहेगा नहीं तो हम बनेगें कहाँ? या बिगड़ेंगे कहाँ?" तमाम असहमतियों के बाद भी परवेज़ की बातों में साफ़गोई थी ।आप तात्कालिक समय में भी क्रियाशील रहें इसकी हमें तमन्ना है ❤
@shivangipandey5796Ай бұрын
तुम्हारी लेखिका कुछ - कुछ तुम्हारे जैसी हैं. 😅
@pratibhasharma7508Ай бұрын
बहुत अच्छी कहानियाँ रही है इनकी आज देख भी लिया
@sanju10520Ай бұрын
पाबंदी और स्वतंत्रता का द्वंद, पाबंदी को कोसना और स्वीकार भी करना । स्वीकार करने तक तो ठीक पर पाबंदी का महिमा मंडन ? बहुत ही सरल, पर सीमित परिधि की लेखिका।
@harishsamyak2413Ай бұрын
आदरणीय अंजुम भाई, संभव हो तो सुशोभित सक्तावत की भी साक्षात्कार संगत करवाई जाए ।
@maheshpunetha5522Ай бұрын
प्रतिरोध जीवन और साहित्य का एक बहुत बड़ा मूल्य होता है।
@meenadhardwivedipathak9894Ай бұрын
बहुत बड़ी बात, "विद्रोह कर के जाएगी कहां ?"
@indirasharma8906Ай бұрын
Sare episodes bar bar dekhti hun soothing sakshatkar
@shagunverma.3128Ай бұрын
बहुत ही सरल, सहज हैं लेखिका। सुनकर बहुत अच्छा लगा।
@ashokseth2426Ай бұрын
आप मेरे लिए बहुत परंपरा वादी है कृष्णा सोबती आपके समय की ही प्रगतिशील लेखिका थीं।
@bhartivats7977Ай бұрын
हम एन एस एस के शिविर में थे वहां आप आईं usi din vahan per Nadi ke upar jhuka hua ek bahut purana ped ukhad gaya tha मेहुन्निसा जी बोलती है उसे देखकर कितना पुराना सहोदर आज जुदा हो गया❤
@kartikey1411Ай бұрын
Hi! Love the show. Can you please upload this on spotify so I can hear it on the go.
@zebaalavi6803Ай бұрын
Dear Anjum. Bahut achcha laga aaj 44 saal baad Mehrun Nisa Jeebko dekh kar. Bahut barhe lekhak Ratan Singh Jee ne inhen aik Radio Programme men Lucknow Aamantarit kiya tha aur Mehrun Nisa Jee hamare Ghar Thahri then. Us samay Hamari pahli Beti Kewal Do maheene ki thee. Aaj bhee yaad Hai ke unhon ne sar se topa yeh kah kar utara thaa ke bachchon ko Sar pe bahut garmi lagti hai. Unhen Hamare Lawn me Gulab ki kiyariyan bahut achi lagi theen aur Unhon ne kaha tha ke .... Kiyariyan N kaho ye to khet hai gulab ko. Mehrun Nisa Jee ke aadar men hamne Urdu Hindi ke bahut se Lekhko ko bulaya tha. Phir hamne Pakistan Hijrst ki
@shortexpert1MАй бұрын
#ईमानदारी ❤
@maheshpunetha5522Ай бұрын
अंतर्विरोधों से भरी बातचीत। इतना लिखा लेकिन विचारों में कोई विकास नहीं हुआ।
@salmanasif7923Ай бұрын
Did anyone notice that Meherunissa ji has an uncanny resemblance to Lata Mangeshkar ji. Even her facial expressions and the way she rubs her hands during the conversation is reminiscent of Lata ji.
@smitavajpayee791Ай бұрын
हाँ !
@katyayanisingh1195Ай бұрын
इनके मन में कई द्वंद्व और उलझन है। इनकी बातों में पाबंदी और स्वतंत्रता स्पष्ट नहीं है खैर, जैसी हम सबकी परवरिश होती है बाद के दिनों में वही हमारे रहन सहन और स्वभाव में दिखता है। उम्र के साथ और दृढ़ होते जाता है।
@SnehLata-sy4miАй бұрын
आपने बिल्कुल सच कहा कि हिन्दू परिवारों में महिलाओ को उतनी मुश्किलों का सामना करना पङता है जितना मुस्लिम समाज में। मेरा मानना है कि हिन्दू परिवार में तुलनात्मक ज्यादा बंदिशें ही नहीं यातना और उत्पीड़न है। फिर चाहे दहेज को लेकर ,तलाक और विधवा होने पर।बल्कि छद्म रूप से स्वतंत्रता का हनन किया जाता है।
@chetnasingh7747Ай бұрын
Kpde khane pdhne ko lekr unse bahut behtar hain ise samjho hmare yha patriyarchy hai unke yha to dhrm aur patriyarchy dono hai ka bahut impact hai .aur dahej vha bhi chlta hai talaq k baad aurrat ko koi property ya kuchh nhi milta after months, halala bhi hai aur data utha lo unka girls ka education percent kitna hai . statement de dena asan hai pr fact pr baat galat sabit hogi
@ashu1394Ай бұрын
फ्रीडम और बंदिश दो शब्द मेहरुन्निसा जी के दिलो दिमाग में इस तरह पैबस्त हो गया कि हर जवाब में वह केवल पाबंदी, फ्रीडम शब्द को ही दुहराती हैं।शायद यह उमर का असर हो या वैचारिक जुड़ाव का अभाव...
@manjuchaturvedi2521Ай бұрын
जो लेखिका पाबंदियों से संत्रस्त रहीं वो क्यों पाबंदी का समर्थन कर रही हैं।ये बड़ा चौंकाने वाला वक्तव्य है। कैसे कोई पाबंदियों को सही ठहरा सकता है।
@chetnasingh7747Ай бұрын
Conditioning hi aisi hai abhi sadiya lgegi usse bahar nikalne me . mostly women especially muslim women Stockholm syndrome se grasit hain
@chetnasingh7747Ай бұрын
Stockholm syndrome
@indirasharma8906Ай бұрын
Ghyanvardhk program
@ashokseth2426Ай бұрын
इतनी पाबंदियां और उनको न्यायोचित समझने लगना ये ठीक नहीं परवेज जी
@ashokseth2426Ай бұрын
सहन शक्ति को इतना महिमामंडित मत कीजिए मेहरूनिस्सा जी अब महिलाएं सहन शील नही डिमांडिंग हैं। और होना ही चाहिए।
@ravishanker9672Ай бұрын
सेलिब्रिटी सुरेंद्र वर्मा कब आ रहे/आ जाओ सुरु we love you
@prakashchandra69Ай бұрын
पारिवारिक वृत्त की लेखिका। उमड़-घुमड़ कर पाबंदी और आजादी का द्वंद्व आता है, लेकिन दायरे से खुद को बाहर निकालना नहीं चाहतीं हैं।घुटन का आत्मस्वीकार। खुलना नहीं चाहतीं हैं। वे विषयांतर नहीं होना चाहतीं और विषय केंद्रित भी नहीं होतीं।
@ashokseth2426Ай бұрын
औरत के दर्द को आप समझती है पर उनको महिमा मंडित भी करती हैं।
@aagaazbyrashmileher2194Ай бұрын
🎉🎉
@perfectcircle892426 күн бұрын
Mai is age me shayad shi se soch k na Bol pau . Pura jivan inka kuntha me beeta hai, conscious aur subconscious mind inka alag alag baate kh rhi hai
@sushmamunindra8481Ай бұрын
बहुत बढ़िया वार्ता
@raginis7671Ай бұрын
Swatantra aur Swachchhandata me antar hai.
@meenadhardwivedipathak9894Ай бұрын
नहीं, यहां हिंदू मुस्लिम नहीं पर जो चुपचाप लिख रहा है उसकी तरफ ये साहित्य समाज ध्यान नहीं देता। मेहरू जी की ये बात सही है।
@ashokseth2426Ай бұрын
स्त्री की स्वतंत्रता से आप खुद क्यों डरी डरी si क्यों हैं mehrunissaa जी
@zebaalavi6803Ай бұрын
( ya karni parhee) Tumne unki Zaati Zindagi par Zyadah Guftugo ki. Ham kahani Kar hone ke atrikt aik Aik anwadak bhi hain. Unka upanneyas " Korja " ke anuwad ke Alawuia
@swapnilsrivastava4625Ай бұрын
पाबंदियों से बाहर निकल कर लिखती तो बेहतर कहानिकार होती.
@deepankersingh4368Ай бұрын
Confused lagi meko. Kabhi kabhi asa laga khud ka astitva ko bhool chuke hain. Lekhak ko apna astitva nahi bhoolna chahiye. Pabandi ka baare ma itna support. Mannu bhandari ke kahani yaad aa gyi. Apko khud ma kranti karne ke jarurat h.
@Ravindrasingh-sf5kkАй бұрын
कोई शब्दाडंबर नहीं, सहज व सरल होना भी एक साहित्यकार का सद्गुण है,स्वतंत्रता संबंधी इनकी विचारधारा को शायद साक्षात्कार कर्ता समझ नही पाए
@shivamchaurasiya1103Ай бұрын
कितनी अज़ीब बात है कि इस देश की कोई कहानीकार देश के गृहमंत्री का अभिवादन हाथ जोडकर कर देती है तो साहित्यिक मठाधीशों के मठ में आग लग जाती है। ऐसे ही कई चीजें हैं। मैं यह बात बहुत दावा के साथ कह रहा हूं कि इस देश में आजादी से लेकर आजतक किसी क्षेत्र मे सबसे ज्यादा तानाशाही रही है तो वह क्षेत्र है हिंदी साहित्य। बस एक विचार के इर्द-गिर्द पूरे साहित्य को चौपट कर दीया गया है। जो इससे इतर रहे उसे साहित्यकार ही न मानें। हिंदी कविता के बुरे दौर के लिए संस्थानों में जो एक विचार की तानाशाही चल रही है वही सबसे ज्यादा जिम्मेदार है।
@vasundharavyas7008Ай бұрын
मेहरुन्निसा परवेज जी के दिमाग में फ्रीडम शब्द फ़ीड हो गया है। बहुत उम्मीद थी उनके साक्षात्कार से .. कुछ खास बोल नहीं सकीं। कुछ स्पष्ट विचार नहीं रख सकीं। उम्र और माहौल का असर ही हो सकता है।
@ashokseth2426Ай бұрын
सीधी सादी घरेलू सहन शील महिला
@miraadi97Ай бұрын
Humari Maa'ein Kyu Nahi Likhti, mere jeso' ke mann main itna eham kyu hain ki likha hi jaye, unke man hain na likhna hi sayad normal hota ho ya samaj ko thaalne wala kaam hi eham hota hoga aur kaam purush samaj swikar bhi karta hain apne baccho ko likhne ki sahuliyat di taki freedom se jiye no unhe moka nahi mila pr unke bacho ko bhi tok ti hain ki yeh naa kare fir bhi un ke waqt se zyada hi freedom deti thi aur unke jeevan se apna jeevan jee leti thi, humari maa'on ke man main paabandhi nahi thi pr unke liye sab pabandhi thi bhalhe unse peda huwa samaj unke bol vachan vyavhar rajneeti se pad main age badh jayein phir bhi nahi likhti, phir bhi nahi likhti jab kalam ke paise mil jayein. konsi aazadi hain yeh jo pad pe bhi auratein hai woh qanoon, kaam, order, rahsya, rasa, bill toh likhti hain pr apni maa pe nahi likhti aur maa banke bhi nahi likhti maa banne ka vyavharik dabav humse raha hain sabse se pehli pabandhi wahi rehti hain sabse pehli azaadi bhi phir wahi hoti hain sochte sochte, bhale n likhne ki azaadi unke dimaag main na ho kya zyada azaadi bhi hoti toh likhti, phir bhi nahi likhti bhale nahi likhti pr likhne ki aazadi toh deti hain, dard ko pi Jane ka likhne wali ink carton pe kalam dubone ka patra jis se kalam humse sa likhti hain, humein bethne ka vishwas, aadmiyon ko aurton ke sath chalne ka, padd pe vishwas se banne rehne ka aur jeene ka vishwas humare mann main likhti hain, aap likhye aagar humari maa'ein nahi likhti azadi kitne sahi hain apke mann main woh bhi likhiye, bina ma'wali maa'ein bhi likhe agar we nahi likhti bhale na like kya stree bina maa ka patra banne kya maa'ein woh shehaj bhasha aur susheelta se likh sakta hain likhe phir humein toh likhna sikhaya hain likhe phir, padhna bhool jate hain hum dekhna bhool jate hain an ginat kalpnik maa'on ka lekh nigal jate hain dusro ko nigal ne ke liye uske liye likhe apne jo shuddh banane ka banne ka manulekh mann main likhti hain uspe be likh humari maa'ein kya isliye nahi likhti ki likh ke samaj hil Jayega shehjata se swikaar nahi hoga ane wali maa'on pe aur pabandhi hogi kya isliye nahi likh ti kya yeh sab jo abhi likha hain kya ye maa'ein humein likhwati hain apne man se, maa'ein likhti hain meri ma kyu nahi likhti hain aapki maa unki maa bharatmaa kyu nahi likhti kya unko azaadi degi jo aaj unke naam se likhte hain kya isliye humari maa'ein nahi likhti. People are writing thesis and thesis on Mehrunissa kya isliye likhte hain kis liye likhte hain samaj ke liye samj ke liye kitni azaadi se the author pointed on took much azaadi which only a author can potray as she has potrayed freedom, discipline resistance, liberation and self restraint. A bit tussle happened when young mind touched the established one which show Hindwi has that spine which academia of Hindi lackes ye patrimayein likhti toh hain apni chaar diwaro ke andar bandh bakse main charcha karke virodh ladai sab karke likhti hain pr samaj se nahi kehti and Mehrunissa samaj se kehti hain likhte likhate likhvati hain aur uske upar bhi likh leti hain. Wonderful Episode, Thanks.
@jitendraKumar-cw2yvАй бұрын
जैसा भोगा वैसा बयान किया
@risingbantu687024 күн бұрын
मेहरुन्निसा परवेज़ जी कहीं न कहीं जो यथार्थ झेली हैं उसको अपने चरित्र में उतार ली हैं । कहीं न कहीं उनके और आज की स्त्रियों में सोच का मतभेद जरूर होगा। परवेज़ जी अभी उस सोच से बाहर नहीं आ सकीं हैं। उनके वक्तव्य से साफ पता चलता है। फ़िर भी निशा जी एक बेहतरीन लेखक व कवयित्री हैं उनके रचना कर्म को सलाम करता हूँ।
@maheshpunetha5522Ай бұрын
लगता है फ्रीडम का मतलब ही नहीं समझती हैं
@ashokseth2426Ай бұрын
आज की औरत पति की मार नही सहती । आप पुराने युग की है मेहरूनिसा जी
@adarshgangrade2484Ай бұрын
Worst interview of Sangat series till date 😢
@Anraj.1Ай бұрын
बहुत अच्छा
@ashokseth2426Ай бұрын
आप ने अपनी बेटी को आगे बढ़ाया आप बधाई की पात्र हैं मेहरूनीसा जी