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कंटकारी, भटकटैया, कटेरी, रेंगनी, रिंगिणी ,निदग्धिका, क्षुद्रा तथा व्याघ्री और वैज्ञानिक नाम सोलेनेसी कुल के अंतर्गत, सोलेनम ज़ैंथोकार्पम (Solanum xanthocarpum) नाम दिए गए हैं।
काँटों से युक्त होते हैं। पत्तियाँ दाँतीदार होते हैं। जो भारवतर्ष में प्राय: सर्वत्र रास्तों के किनारे तथा परती भूमि में पाया जाता है। पुष्प जामुनी , फल गोल हरे, पकने पर पील और कभी-कभी श्वेत भी होते हैं।
आयुर्वेद में कंटकारी बहुत उपयोगी जड़ी बूटी है और व्यापक तौर पर इसका इस्तेमाल सर्दी, जुकाम, अस्थमा और ऐसे कई श्वसन मार्ग से जुड़ी स्थितियों के इलाज में किया जाता है। दस जड़ी बूटियों के समूह यानी दशमूल में से एक कंटकारी यानी कटेरी भी है। कंटकारी का मतलब होता है जो गले के लिए अच्छी हो। ये लैरिंजाइटिस और गले में खराश आदि समस्याओं को दूर करने की क्षमता रखती है।
कटेरी बूटी को रस के रूप में लेने पर इसका स्वाद कसैला और कड़वा होता है। ये हल्की, सूखी और तीक्ष्ण होती है।इसका गर्म प्रभाव रहता है। ये पाचन अग्नि को उत्तेजित करती है और डिस्पेनिया एवं खांसी का इलाज करती है। इससे राइनाइटिस, दर्द, असंतुलित वात एवं कफ दोष और बुखार का इलाज भी होता है।