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प्रियजन,
श्री गुरु रविदास जी की वाणी है, 'किहिं मन टेढ़ो टेढ़ो जात'। दयामेहर से वचन करते हुए कि क्यूँ हमारा मन टेढ़ा-टेढ़ा चलता है, क्यूँ नहीं सही राह पर चलता, गुरु साहब आगाह कर रहे हैं कि नासमझी में जन्म व्यर्थ जा रहा है। जीवन बरबाद हो रहा है। जिस हाड़ मांस के शरीर, थूक-लार, बिष्टा की पिटारी को देखकर मन इतराता है उसका तो छार यानी घट-घट कर अंत हो रहा है। हम नासमझी में रह रह्यों को सचेत कर रहे हैं कि प्रभु के नाम का सिमरन कर नहीं तो उम्र बीत जाने पर पछताएगा।
'तब पछताए होत क्या'
🙏