ईमानदारी का फल। मेहनत का फल।The honesty। प्रेरक हिंदी कहानियां।पंचतंत्र की कहानियाँ ।Hindi stories

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बहुत समय पहले, एक छोटे से गांव में रमेश नाम का एक युवक रहता था। गरीब परिवार से होने के कारण उसकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई, लेकिन उसके अंदर कुछ बड़ा करने का सपना और मेहनत की ललक थी। नौकरी की तलाश में रमेश राजा के महल पहुंचा। वहां मुख्य मंत्री ने उसकी ईमानदारी और आत्मविश्वास को देखकर उसे महल में चपरासी की नौकरी दिलवा दी।
चपरासी से सीखने का सफर
रमेश ने चपरासी का काम निष्ठा और ईमानदारी से किया। महल के हर कोने की जिम्मेदारी उसने अपने ऊपर ले ली। जब राजा और मंत्री राज्य के मामलों पर चर्चा करते, तो वह ध्यान से उनकी बातें सुनता और प्रशासन के बारे में सीखता। धीरे-धीरे, वह केवल चपरासी नहीं रहा; उसने महल को सुधारने की ठानी।
फर्नीचर हटाना और सोना जमा करना
रमेश ने देखा कि महल में बहुत-सा पुराना और बेकार फर्नीचर धूल खा रहा है। उसने राजा की अनुमति से उस फर्नीचर को हटवा दिया और महल को साफ-सुथरा बनाया। उसने यह भी देखा कि कई लिफाफे, जिन पर सोने की परत थी, बेकार पड़े हैं। उसने उस सोने को उतरवाकर राज्य के खजाने में जमा करवा दिया।
लेकिन महल के कुछ मंत्री उसकी इस मेहनत से जलने लगे। उन्होंने राजा से शिकायत की कि रमेश राज्य का धन बर्बाद कर रहा है। राजा ने रमेश को बुलाया और सवाल किया। रमेश ने सिर झुका कर कहा, "महाराज, मैंने केवल राज्य के धन और संसाधनों का सही उपयोग किया है। अगर मेरी नीयत पर शक है, तो मैं सजा के लिए तैयार हूं।" राजा ने जांच करवाई, और जब सच्चाई सामने आई, तो राजा ने रमेश की ईमानदारी की तारीफ की और उसे वित्त मंत्री बना दिया।
वित्त मंत्री बनने के बाद
वित्त मंत्री बनने के बाद रमेश ने राज्य की आर्थिक व्यवस्था में सुधार करना शुरू किया। उसने किसानों पर से भारी करों का बोझ हटाया और व्यापारियों के लिए नई नीतियां बनाईं। उसने राज्य के खजाने को मजबूत किया और जनता के लिए कल्याणकारी योजनाएं लागू कीं। उसकी ईमानदारी और दूरदर्शिता के कारण राजा और प्रजा दोनों का भरोसा उस पर बढ़ता गया।
राजा की परीक्षा
एक दिन राजा ने अपने मंत्रियों की सच्चाई परखने का निर्णय लिया। उन्होंने आधी रात को सैनिकों को आदेश दिया कि सभी मंत्रियों को उनके बिस्तरों समेत दरबार में लाया जाए। सैनिक जब महल के मंत्रियों के पास पहुंचे, तो देखा कि सभी मंत्री भोग-विलास में डूबे हुए थे। कुछ गहरी नींद में थे, तो कुछ शराब और भोजन का आनंद ले रहे थे।
लेकिन जब सैनिक रमेश के घर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि रमेश मिट्टी के एक दीये की रोशनी में हिसाब-किताब में व्यस्त था। सैनिकों ने उससे कहा, "महाराज ने आपको बिस्तर समेत बुलाया है।" रमेश ने मुस्कुराते हुए कहा, "मेरा बिस्तर यही कुर्सी और मेज है। इसे ही ले चलो।"
सच्चाई का उजागर होना
जब सभी मंत्री दरबार में पहुंचे, तो राजा ने देखा कि बाकी मंत्री आलीशान बिस्तरों पर बैठे थे, जबकि रमेश अपनी साधारण कुर्सी और मिट्टी के दीये के साथ खड़ा था। राजा ने गुस्से में मंत्रियों से कहा, "तुम सबने अपने पद की गरिमा और जिम्मेदारी को भुला दिया है। रमेश जैसा सच्चा सेवक ही राज्य का असली रक्षक है।" राजा ने तुरंत अन्य मंत्रियों को पद से हटा दिया और रमेश को प्रधानमंत्री बना दिया।
प्रधानमंत्री बनने के बाद
प्रधानमंत्री बनने के बाद रमेश ने राज्य को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। उसने अपनी मेहनत और निष्ठा से राज्य को समृद्ध और खुशहाल बनाया। प्रजा उसे आदर और प्रेम से देखती थी, और राजा ने हमेशा उस पर गर्व किया।
यह कहानी हमें सिखाती है कि भोग-विलास नहीं, बल्कि मेहनत और कर्तव्य ही सच्ची सफलता की कुंजी हैं। रमेश की यात्रा यह प्रमाणित करती है कि यदि आपकी नीयत सही हो, तो कोई भी मुश्किल मंजिल आसान हो सकती है।

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