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🌷नायिका नायक से कहती है🌷
हंसती तो थे ल्यावो म्हारा राइबर
हंसत्या रे हल्के आवो जी बन्ना।
घुडला तो थे ल्यावो म्हारा राइबर
घुडला री घूमर आवो जी बन्ना।।
आय गयो फागण को महिनों ,
रंग कठा स्यू ल्यावा जी बन्ना।
केशर घोळा- रंग झकोळा ,
सोना रुपा री पिचकारी जी बन्ना।।
भर पिचकारी म्हारा मुखड़ा पे डारी,
भीग गई गुल साड़ी जी बन्ना।
राज कोठारी जी का कंवर हठीला,
म्हारी नथनी की लडझड तोड़ी जी बन्ना।।
लडझड तोड़ी बीका मोतीडा बिखर गया,
गोडे बेठ पूवाओ जी बन्ना।
हाथी का हजार लागे, धोडा का पचास लागे,
बाइसकल का साठ जी बन्ना।।
मोटर का सवा लाख रुपया,
थाका दादा जी स्यू खरच्या न जावे जी बन्ना।
मोटर बेठ परण वा न चाल्या,
सारो ही शहर सरायों जी बन्ना
आप की हवेली जी के चोसठ पेड़ी,
में तो चढ़ती उतरी हारी जी बन्ना।
थे म्हारा राइबर थे ही म्हारा राम जी,
ओ तन मन था पे में वारी जी बन्ना।।
घाट खाई बाप के, घेवर खाया आप के,
अब थे म्हा हुकुम चलावो जी बन्ना।
थे हि म्हारा हमदम,थे म्हारा मीत प्यारा,
थे म्हारे संग रम जाओ जी बन्ना।।
नायिका यानी कि बन्नी अपने होने वाले प्रियतम से कुछ कह रही है जिसमें अनकही बातें छुपी हुई है फाल्गुनी की मस्ती के साथ रास रंग से हो कर परिवार के सदस्यों के चरित्र चित्रण के साथ यह गीत या बना अपने चरम पर पहुंचता है आजकल की युवा बहन, बेटियां ऐसे गीतों से कोसों दूर है। यह समय का तकाजा है या हम सब का पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ते हुए कदम का नतीज़ा है।जो पुराने गीत भूल कर फिल्मी गीतों की तर्ज पर थिरकते पांव को रोकने में असमर्थ हैं एक सहज सरल शब्दों में इस गीत को पिरोया है आप आनंद लीजिए।