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#Maharishi dayannd kriyayog pranayam-2#महर्षि दयानंद के दो प्राणायाम विधि..
1-एक गहरा सांस ले जिसकी टक्कर आपके मूलाधार चक्र पर हो,फिर गहरा सांस लेकर अब कुम्भक करें और तीनों बन्ध लगाए,अब जितनी देर सांस रोके जाए रोके ओर मन मे अपना गुरु मंत्र या इष्ट मन्त्र जपते रहे और ध्यान को अपने सामने एक तेजोमय बिंदु पर लगाये रखे ओर जब घबराहट हो तब बहुत धीरे धीरे सांस को छोड़ते हुए कल्पना अनुभव करें कि मेरे सांस के साथ एक शक्ति का प्रवाह मेरी रीढ़ से होता हुआ आज्ञा चक्र से बाहर आकाश तक जाकर विस्तार हो गया,अब जैसे ही सांस को पूरी तरहाँ छोड़े ओर सांस को बाहर निकाल कर वहीं अवस्था मे रोके रहे और तीनों बन्ध फिर लगाए और अपने गुरु मन्त्र का जप करते रहे,ज्यो ही सांस रोकने से घबराहट हो,तो फिर धीरे धीरे सांस को भरते हुए यही भावना कल्पना के साथ करते जाए कि,मेरे अंदर बाहर से प्राण शक्ति आकर मेरे मेरुदण्ड से गुजरती हुई मूलाधार चक्र तक व टांगो पैर अंगूठे तक फैल कर मुझे बलशाली बना रही है और अब फिर कुम्भक करके साथ ही तीनो बन्ध लगाए और अंतर त्राटक के साथ जप करे।
ओर अब जब फिर से सांस घुटने लगे तब धीरे धीरे से छोड़कर अब केवल आराम से बैठकर ध्यान करें।
ऐसे फिर 2 मिंट या जब आपकी घबराहट कुछ शांत हो जाये फिर इसे ही मन्त्र जो ध्यान के साथ अंतर कुम्भक व बहिर कुम्भक के साथ प्राणायाम करें।
ऐसे कम से कम प्रारम्भ में 12 प्राणायाम ही करें और एक माह तक केवल 12 प्राणायाम ही करें।और फिर केवल इसी प्राणायाम को बढ़ाये नहीं।
बल्कि इन 12 प्राणायामों में ही कुम्भक यानी सांस रोकने और ध्यान लगाएं रखने का अभ्यास ही बढ़ाना है।और यही बात इस प्राणायाम की मुख्य अभ्यास है।
यो क्वालटी बढाओ,क्वांटिटी नहीं। यही शक्तिवर्द्धक इस प्राणायाम का गुण ओर सूत्र है।यही ध्यान रखना है,तब आपकी मूलाधार चक्र से कुंडलीनी जाग्रत होगी।और ध्यान व मेघा शक्ति स्मरण शक्ति चित्त की प्रबल एकाग्रता बढ़ती जाएगी ओर अखण्ड बह्मचर्य बढ़ता जाएगा और 6 महीने में ओर विशेषकर सही से करने पर दो साल के अभ्यास में आप गहन ध्यान में अवश्य प्रवेश करेंगे।
2-प्राणायाम है शक्तिपात प्राणायाम की विधि...
ये भस्त्रिका के तीन प्रकार के प्राणायाम है।
तेज सांस खिंचना ओर धीरे से छोडना ओर फिर तेज सांस लेना फिर धीरे से छोड़ना।
यो 25 भस्त्रिका करके अब आधा मिनट रुककर एक गहरा सांस लेकर तीनों बन्ध लगाकर कुम्भक करे। और ध्यान में अपने मूलाधार चक्र में लगाये मूल बन्ध की बार बार दृढ़ करना और उस बार बार की दृढ़ता के झटके से मूलाधार से प्राणों को रीढ़ में यानी मन की शक्ति से सुषम्ना नाड़ी मे चढाने की मनोकल्पना करनी है,यो फिर जब सांस रुके नहीं तब तीनो बन्ध खोलकर फिर धीरे धीरे सांस छोड़कर आधा मिंट विश्राम करें।
अब फिर 25 तेज भस्त्रिका करें और धीरे से छोड़ फिर 24 भस्त्रिका के बाद आधा मिनट विश्राम करके अब फिर गहरा सांस लेकर कुम्भक करते हुए तीनो बन्ध लगाए।
यो आपको केवल
25 भस्त्रिका फिर कुम्भक इर फिर 25 भस्त्रिका फिर कुम्भक यो 125 भस्त्रिका ओर5 कुम्भक करके जीतनी देर ध्यान किया जा सके उतनी देर ध्यान करे और उठ जाए।यो 3 महीने से 6 महीने के बीच आपको आपके प्राण शुद्ध होकर मन शुद्ध व एकाग्र होकर आपको ॐ रूपी अनहद नांद की ध्वनि सुनाई देगी और इसमे आपका मन खोने लगेगा ओर कुंडलिनी जाग्रत होकर मन सुषम्ना में प्रवेश करके गहन ध्यान फिर समाधि की प्राप्ति होने लगेगी।बल बुद्धि तेज इर अखण्ड बह्मचर्य की सिद्धि तो संग संग मिलती ही जाएगी।यो ये महर्षि दयानंद जी के दो प्राणायाम करें और उच्चतम बलवर्द्धि के साथ साथ आध्यात्मिक लाभ लें।