खूब समझाया ओइम् में ही सब समाया है माँ ने कहा है ओम् भगवान के हस्ताक्षर हैं।
@Rangbaaj00399 ай бұрын
आचार्य जी को कोटि कोटि नमन 🙏🙏🙏
@DhanjayKumar-kk6zd7 ай бұрын
Om 🙏🙏🙏🙏
@deependrasingh1088 Жыл бұрын
Acharya ji sadar pradam aapke dyara gyan se sab ka jiwan safal ho sath hi sath apke digra ayu ki param pita parmatma se pratham karta hoon.dhanybad achary jee
@उमाशंकरद्विवेदी-प2घ Жыл бұрын
गुरुदेव महाराज आपको साष्टांग दंडवत
@prabhakarkumar-jf6nz Жыл бұрын
अति सुन्दर, बहुत ही उम्दा व्याख्यान, प्रस्तुति l ॐ नमस्ते ❤❤
@bhavanishankarvyas3355 Жыл бұрын
बहुत ही सुंदर भी अच्छा नहीं ओमकार के ऊपर नमस्ते गुरुदेव
@bhavanishankarvyas3355 Жыл бұрын
बहुत ही सुंदर व्याख्यान ओम के ऊपर बहुत बहुत प्रणाम गुरुदेव
@सागरआर्य2 жыл бұрын
ओउम् 🚩
@kumarkamalartist Жыл бұрын
Great guru ji Sattyasanatani vedic dharma ki jay Arya Samaja ki jay
@mithleshsharma30967 ай бұрын
O m shanti
@rakeshmaurya70906 ай бұрын
guruji namaskar kitna achhe se samjhate hai aap Dil❤ khush hojata hai
@brijeshsharma788 Жыл бұрын
बृजेश कुमार शर्मा आचार्य जी सादर नमस्ते ओ3म् की अति सारगर्भित व व्याख्या आपके द्वारा की गयी है धन्यवाद गुरू जी सादर प्रणाम जी
@ururkram8490 Жыл бұрын
ओऽम् नमस्ते🙏
@dr.pannalaldhakad3506 Жыл бұрын
Jai ho
@RamnareshSolanki-d7g11 ай бұрын
9m santi❤
@RamnareshSolanki-d7g11 ай бұрын
Om ma anaa aatmaa❤
@aanamikadebbarmaa919 Жыл бұрын
Jai Shree Ram ❤
@artesingh48812 жыл бұрын
सत्यार्थ प्रकाश की बहुत ही अच्छी तरह से भूमिका की व्याख्या समझाए आचार्य जी।भवान नमन्ति
@jagatramsharma6764 Жыл бұрын
Great and meani ngful speach....Thanks
@sanjeevrastogi6811 Жыл бұрын
Jmjki 🙏 एक बार श्री आशुतोष महाराज जी से किसी ने पूछा- गुरु महाराज जी ,हमारे शास्त्रों में समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है ।परंतु कुछ संत- महापुरुषों ने इस वर्गीकरण का विरोध किया हैं ।तो महाराज जी ने जवाब दिया -एक बार एक कट्टरपंथी ब्राह्मण हमारे पास आए ।उन्होंने हमसे कहा इस समाज में ईश्वर ने चार वर्णों की उत्पत्ति की है ।इसलिए सभी को इस वर्ण व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए। हमने उनसे पूछा -किस आधार पर ईश्वर ने वर्ण व्यवस्था की है ।तो उन्होंने बताया कि ईश्वर के मुख से ब्राह्मण ,भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पदों से शूद्र उत्पन्न हुए हैं ।इसलिए ब्राह्मण उत्कृष्ट हैं और शूद्र निकृष्ट ।तब महाराज जी ने कहा -यदि एक पिता के 4 पुत्र हो ,तो उन पुत्रों की एक जाति होनी चाहिए। इसी प्रकार सब मनुष्यों का पिता एक परमेश्वर है ,तो मनुष्य समाज में भी जाति भेद नहीं होना चाहिए। सभी एक समान ही है ।ना कोई ऊंचा है ,ना नीचा । जिस प्रकार शरीर के सब अंग महत्वपूर्ण है, उसी प्रकार इन अंगों से निसृत सभी मनुष्य भी समान रूप से महिमाशाली हैं। यदि ईश्वर के चरणों से उत्पत्ति होने के कारण कोई निकृष्ट हो जाता है तो गंगा के विषय में आप क्या कहते हैं। क्योंकि हमारे शास्त्र कहते हैं -नारायण के श्री चरणों से गंगा जी की उत्पत्ति हुई ।फिर इस गंगा को देवों के देव भगवान शंकर ने अपने शीश पर स्थान दिया। ऐसा क्यों किया उन्होंने ?इसलिए यह कहना गलत है कि भगवान के चरणों से उत्पन्न होने के कारण शुद्र निम्न है। वास्तव में वर्णों की स्थापना गुण कर्म के आधार पर की गई थी ना किसी अन्य कारण से। ब्राह्मण वर्ग में वे व्यक्ति रखे गए जो चिंतनशील स्वभाव के थे। जो स्वभाव से पराक्रमी और साहसी थे उनको छत्रिय कहा गया। और जिनकी रूचि व्यवसाय में थी उन्हें वैश्य कहा गया। जिन लोगों की रूचि समाज सेवा मे थी उनको शुद्र कहा गया ।जैसे कि इंजीनियर डॉक्टर आदि। जन्म के आधार पर किसी को शूद्र या ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता। यही बात आध्यात्मिक जगत में भी लागू होती है। जब हम पूर्ण गुरु से ब्रह्मज्ञान में दीक्षित होकर आंतरिक जगत में प्रवेश करते हैं तो हमारा सफर भी निम्न प्रवृत्तियों से उच्च चेतना की ओर होने लगता है। ध्यान साधना द्वारा हम जितना जितना अध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करते हैं, आंतरिक आकाश की ऊंचाइयों को छूते चले जाते हैं, उतना उतना हमारे मानसिक दायरे टूटते चले जाते हैं। हमारे मन की संकीर्ण सोच विराट होने लगती है। भेदभाव की सभी दीवारें खत्म हो जाती हैं। हम जान लेते हैं कि हम सभी उस एक परम पिता की संताने हैं ।हममे कोई भेद नहीं। कोई ऊंच-नीच नहीं। एक पिता एकस के हम बारिक। इसलिए हमारे महापुरुषों ने जन-जन को ब्रह्म ज्ञान का उपदेश देकर आत्म उत्थान की ओर अग्रसर किया। जाति के नाम पर समाज को विघटित करना हमारा उद्देश्य नहीं ,बल्कि सभी को आत्म- दर्शन करा कर एक सूत्र में बांध देना हमारा लक्ष्य है ।क्योंकि तभी समाज में शांति की स्थापना हो सकेगी। 🙏🙏🌷🌷🌸🌸🌼🌼🌷🌷🙏🙏
@divyanshnaturals2246 Жыл бұрын
ॐ. देवनागरी का संयुक्ताक्षर है क्या कोई जनेऊधारी बतायेगा कि देवनागरी से पुर्व यह. ॐ किस प्रकार लिखा जाता था सिन्धू सभ्यता का ल मे किस प्रकार लिखा जाता था
@KhushbooYadav-q4h Жыл бұрын
@@sanjeevrastogi6811🎉😂😢❤
@keshukeshu92498 ай бұрын
ओम्
@उमाशंकरद्विवेदी-प2घ Жыл бұрын
सत्य सनातन वैदिक धर्म संस्कृति और सभ्यता की जय
@mithleshsharma30967 ай бұрын
O m ka sundr arth smjhaya nmn
@NavratanAryaАй бұрын
🕉🕉🕉🕉🕉🙏🙏🙏🙏🙏🚩🚩🚩🚩🚩
@sarojsharma412 Жыл бұрын
Om Acharya ji.
@shyamnandanprasadvideos1280 Жыл бұрын
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदस्य...
@raghabasahu1922 Жыл бұрын
सादर नमस्ते गुरूजीमहराज 🙏🙏❤️❤️❤️🏵️🌺🌺
@SumbhasinghShetinore Жыл бұрын
ईश्वर का नाम ईश्वर ही है
@KuldeepKumar-hp6lz Жыл бұрын
Nhi om he hai❤❤❤
@SumbhasinghShetinore Жыл бұрын
@@KuldeepKumar-hp6lz झूठ
@ypschauhan70562 жыл бұрын
ओम की अति सारगर्भित व्याख्या आपके द्वारा की गई है ।धन्यवाद आम
@RamnareshSolanki-d7g11 ай бұрын
Om ma anaa aatmaa
@maheshpatel1531 Жыл бұрын
ओम शब्दका विस्तृत अथॅ समजानेके लिऐ धन्यवाद, पूज्य गुरुजीको कोटी कोटी प्रणाम 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
@mithleshsharma30967 ай бұрын
Jey ho aachary g .nmn
@आर्यासुमना2 жыл бұрын
🕉️🙏नमस्ते आचार्य जी
@VinayPatade Жыл бұрын
Satya= Om NAD hai Satya ko Darsh karta hai
@ManveerSingh-yz6ve Жыл бұрын
Behad saral or saty prekat Kiya Gaya he.istareh samjhana behad jatil tha. Acharyji ko koti koti pradam
@yuvrajgupta7302 Жыл бұрын
Prnam gurudev
@gulabchandra2963 Жыл бұрын
धन्यवाद
@DharitriKochari Жыл бұрын
Om dhwani
@davidkhanal3232 Жыл бұрын
Jay gurudev
@SoniDhaka-m5e11 ай бұрын
Srimanji aap ka gyan kagji.
@SunitaDevi-yi5nf11 ай бұрын
Aaderney Acharya ji sader namaste ji bhut bhut danyabad Acharya ji 🙏
@brijendrasingh4749 Жыл бұрын
आदरणीय आचार्य जी सादर नमस्ते 🌹🌹🌹☂️
@Vipinkumar-v9i4u Жыл бұрын
आचार्य जी को मेरा श्री चरणों में कोटि कोटि सादर नमन हो जय आर्य समाज की 🙏🙏🙏
@savitabapatel1064 Жыл бұрын
Huuu87u
@rajkumarimishra4715 Жыл бұрын
ॐनमः शिवाय लेकिनकुछ ऐसे बिद्वान हैं जो इसॐसे नारी को रोक लगाते हैं ।
@rajeshsharma-sr7yh2 жыл бұрын
Aaj aapny Murti puja ky bary me nhi bola Or jo bola wo nice sunder hi kisi ki koi burai nhi Thanks 🙏
आचार्य जी प्रणाम,मै आपके प्रवचन समय पर सुनता रहता हू। आपकी प्रत्येक विषय व्याख्या अति ज्ञान वान है।आपको फिर से प्रणाम।
@gvsingh1694 Жыл бұрын
Auom ki vyakhya bade hi sunder vani main di usake liye dhanyavad..
@divyanshnaturals2246 Жыл бұрын
ॐ. देवनागरी का संयुक्ताक्षर है क्या कोई जनेऊधारी बतायेगा कि देवनागरी से पुर्व यह. ॐ किस प्रकार लिखा जाता था सिन्धू सभ्यता का ल मे किस प्रकार लिखा जाता था
@KamaleshSharma-fm1mo7 ай бұрын
❤❤❤❤
@AshokKumar-be6oo Жыл бұрын
Best wishes 🙏🙏 sir ji
@ShivKumar-ml8vo Жыл бұрын
Aacharya ji parnam
@kashinathrajbanshi9686 Жыл бұрын
Om me udhar mukti nahi hai sir.Udhar mukti,pap xama n life change -wonderful God Jesus me hai.
@birbalmeerwal9537 Жыл бұрын
ईश्वर का नाम ईश्वर ही है ओर कोई नाम नहीं ।
@punamchandpanchal605921 күн бұрын
Excellant
@ajaynain273 ай бұрын
मजा आ गया आचार्य श्री
@basantkumarjml4 ай бұрын
❤good
@SomshekarKodigi Жыл бұрын
Best sir
@munnalal-ui6lb Жыл бұрын
ईश्वर जीव प्रकृति इन सबसे अलग है पूर्ण ब्रह्म सच्चिदानंद परमात्मा। ओउम-अकार,उकार मकार। सतोगुण रजोगुण तमोगुण। इन सबसे अलग है पूर्ण ब्रह्म परमात्मा।
@gittuchoudhary Жыл бұрын
Om
@as8084 Жыл бұрын
सबका भला करो भगवान सबके कष्ट मिटे भगवान सबको सन्मति दे भगवान सब सुख सच हो सब दुख झूठ धन्यवाद परमात्मा को सब देवी देवता और आत्मा ओंका र को नमो नमः सब जीवो की ओर से
@rajubawa43722 жыл бұрын
🕉🕉🕉ओम् पतनम भाई🕉🔱🔱🔱🚩🚩🚩🇮🇳🇮🇳🇮🇳
@ankitarya.5479 Жыл бұрын
bhot सही explanation ha उत्तम अति उत्तम👍🚩🔥💯💯
@sanjeevrastogi6811 Жыл бұрын
Jmjki 🙏 एक बार श्री आशुतोष महाराज जी से किसी ने पूछा- गुरु महाराज जी ,हमारे शास्त्रों में समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है ।परंतु कुछ संत- महापुरुषों ने इस वर्गीकरण का विरोध किया हैं ।तो महाराज जी ने जवाब दिया -एक बार एक कट्टरपंथी ब्राह्मण हमारे पास आए ।उन्होंने हमसे कहा इस समाज में ईश्वर ने चार वर्णों की उत्पत्ति की है ।इसलिए सभी को इस वर्ण व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए। हमने उनसे पूछा -किस आधार पर ईश्वर ने वर्ण व्यवस्था की है ।तो उन्होंने बताया कि ईश्वर के मुख से ब्राह्मण ,भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पदों से शूद्र उत्पन्न हुए हैं ।इसलिए ब्राह्मण उत्कृष्ट हैं और शूद्र निकृष्ट ।तब महाराज जी ने कहा -यदि एक पिता के 4 पुत्र हो ,तो उन पुत्रों की एक जाति होनी चाहिए। इसी प्रकार सब मनुष्यों का पिता एक परमेश्वर है ,तो मनुष्य समाज में भी जाति भेद नहीं होना चाहिए। सभी एक समान ही है ।ना कोई ऊंचा है ,ना नीचा । जिस प्रकार शरीर के सब अंग महत्वपूर्ण है, उसी प्रकार इन अंगों से निसृत सभी मनुष्य भी समान रूप से महिमाशाली हैं। यदि ईश्वर के चरणों से उत्पत्ति होने के कारण कोई निकृष्ट हो जाता है तो गंगा के विषय में आप क्या कहते हैं। क्योंकि हमारे शास्त्र कहते हैं -नारायण के श्री चरणों से गंगा जी की उत्पत्ति हुई ।फिर इस गंगा को देवों के देव भगवान शंकर ने अपने शीश पर स्थान दिया। ऐसा क्यों किया उन्होंने ?इसलिए यह कहना गलत है कि भगवान के चरणों से उत्पन्न होने के कारण शुद्र निम्न है। वास्तव में वर्णों की स्थापना गुण कर्म के आधार पर की गई थी ना किसी अन्य कारण से। ब्राह्मण वर्ग में वे व्यक्ति रखे गए जो चिंतनशील स्वभाव के थे। जो स्वभाव से पराक्रमी और साहसी थे उनको छत्रिय कहा गया। और जिनकी रूचि व्यवसाय में थी उन्हें वैश्य कहा गया। जिन लोगों की रूचि समाज सेवा मे थी उनको शुद्र कहा गया ।जैसे कि इंजीनियर डॉक्टर आदि। जन्म के आधार पर किसी को शूद्र या ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता। यही बात आध्यात्मिक जगत में भी लागू होती है। जब हम पूर्ण गुरु से ब्रह्मज्ञान में दीक्षित होकर आंतरिक जगत में प्रवेश करते हैं तो हमारा सफर भी निम्न प्रवृत्तियों से उच्च चेतना की ओर होने लगता है। ध्यान साधना द्वारा हम जितना जितना अध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करते हैं, आंतरिक आकाश की ऊंचाइयों को छूते चले जाते हैं, उतना उतना हमारे मानसिक दायरे टूटते चले जाते हैं। हमारे मन की संकीर्ण सोच विराट होने लगती है। भेदभाव की सभी दीवारें खत्म हो जाती हैं। हम जान लेते हैं कि हम सभी उस एक परम पिता की संताने हैं ।हममे कोई भेद नहीं। कोई ऊंच-नीच नहीं। एक पिता एकस के हम बारिक। इसलिए हमारे महापुरुषों ने जन-जन को ब्रह्म ज्ञान का उपदेश देकर आत्म उत्थान की ओर अग्रसर किया। जाति के नाम पर समाज को विघटित करना हमारा उद्देश्य नहीं ,बल्कि सभी को आत्म- दर्शन करा कर एक सूत्र में बांध देना हमारा लक्ष्य है ।क्योंकि तभी समाज में शांति की स्थापना हो सकेगी। 🙏🙏🌷🌷🌸🌸🌼🌼🌷🌷🙏🙏
@sukhadaarya7611 Жыл бұрын
Oum
@jatindersekhon8196 Жыл бұрын
Love thank you telling truth ❤
@JagdishSingh-vm1lh Жыл бұрын
Nice explanation. ❤
@pratimamishra9399 Жыл бұрын
All the doubts cleared about "OM". Explained nicely. Thanks a lot.
@bhagwatiprasadcarpenter20832 жыл бұрын
Wah aacharya ji wah 🙏🏼🚩🙏🏼🚩
@sanjeevrastogi6811 Жыл бұрын
Jmjki 🙏 एक बार श्री आशुतोष महाराज जी से किसी ने पूछा- गुरु महाराज जी ,हमारे शास्त्रों में समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है ।परंतु कुछ संत- महापुरुषों ने इस वर्गीकरण का विरोध किया हैं ।तो महाराज जी ने जवाब दिया -एक बार एक कट्टरपंथी ब्राह्मण हमारे पास आए ।उन्होंने हमसे कहा इस समाज में ईश्वर ने चार वर्णों की उत्पत्ति की है ।इसलिए सभी को इस वर्ण व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए। हमने उनसे पूछा -किस आधार पर ईश्वर ने वर्ण व्यवस्था की है ।तो उन्होंने बताया कि ईश्वर के मुख से ब्राह्मण ,भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पदों से शूद्र उत्पन्न हुए हैं ।इसलिए ब्राह्मण उत्कृष्ट हैं और शूद्र निकृष्ट ।तब महाराज जी ने कहा -यदि एक पिता के 4 पुत्र हो ,तो उन पुत्रों की एक जाति होनी चाहिए। इसी प्रकार सब मनुष्यों का पिता एक परमेश्वर है ,तो मनुष्य समाज में भी जाति भेद नहीं होना चाहिए। सभी एक समान ही है ।ना कोई ऊंचा है ,ना नीचा । जिस प्रकार शरीर के सब अंग महत्वपूर्ण है, उसी प्रकार इन अंगों से निसृत सभी मनुष्य भी समान रूप से महिमाशाली हैं। यदि ईश्वर के चरणों से उत्पत्ति होने के कारण कोई निकृष्ट हो जाता है तो गंगा के विषय में आप क्या कहते हैं। क्योंकि हमारे शास्त्र कहते हैं -नारायण के श्री चरणों से गंगा जी की उत्पत्ति हुई ।फिर इस गंगा को देवों के देव भगवान शंकर ने अपने शीश पर स्थान दिया। ऐसा क्यों किया उन्होंने ?इसलिए यह कहना गलत है कि भगवान के चरणों से उत्पन्न होने के कारण शुद्र निम्न है। वास्तव में वर्णों की स्थापना गुण कर्म के आधार पर की गई थी ना किसी अन्य कारण से। ब्राह्मण वर्ग में वे व्यक्ति रखे गए जो चिंतनशील स्वभाव के थे। जो स्वभाव से पराक्रमी और साहसी थे उनको छत्रिय कहा गया। और जिनकी रूचि व्यवसाय में थी उन्हें वैश्य कहा गया। जिन लोगों की रूचि समाज सेवा मे थी उनको शुद्र कहा गया ।जैसे कि इंजीनियर डॉक्टर आदि। जन्म के आधार पर किसी को शूद्र या ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता। यही बात आध्यात्मिक जगत में भी लागू होती है। जब हम पूर्ण गुरु से ब्रह्मज्ञान में दीक्षित होकर आंतरिक जगत में प्रवेश करते हैं तो हमारा सफर भी निम्न प्रवृत्तियों से उच्च चेतना की ओर होने लगता है। ध्यान साधना द्वारा हम जितना जितना अध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करते हैं, आंतरिक आकाश की ऊंचाइयों को छूते चले जाते हैं, उतना उतना हमारे मानसिक दायरे टूटते चले जाते हैं। हमारे मन की संकीर्ण सोच विराट होने लगती है। भेदभाव की सभी दीवारें खत्म हो जाती हैं। हम जान लेते हैं कि हम सभी उस एक परम पिता की संताने हैं ।हममे कोई भेद नहीं। कोई ऊंच-नीच नहीं। एक पिता एकस के हम बारिक। इसलिए हमारे महापुरुषों ने जन-जन को ब्रह्म ज्ञान का उपदेश देकर आत्म उत्थान की ओर अग्रसर किया। जाति के नाम पर समाज को विघटित करना हमारा उद्देश्य नहीं ,बल्कि सभी को आत्म- दर्शन करा कर एक सूत्र में बांध देना हमारा लक्ष्य है ।क्योंकि तभी समाज में शांति की स्थापना हो सकेगी। 🙏🙏🌷🌷🌸🌸🌼🌼🌷🌷🙏🙏
@ROSHANKumar-vl6jf Жыл бұрын
Om Namah Shivaya
@vimlagupta2480 Жыл бұрын
Om aapne bahut sundar btaya hei प्रणाम
@shirnarayan3728 Жыл бұрын
Bahut achi Gyan verdhak Jaan Kari di aap ka dhanyavad
@Gautamkumar-gc8ir Жыл бұрын
Bahut achchha
@feelit-itmatters85932 жыл бұрын
आदरणीय प्रभाकर जी, सादर नमस्ते। आपकी इस कक्षा से ना केवल ज्ञानवर्धन होता है अपितु यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण का भी निर्माण करने में सहायक है। आपके प्रयास के लिए आपको साधुवाद। एक अन्य विनती यह थी की आप संस्कृत की कक्षा शुरू करने वाले थे? उसकी प्रतीक्षा है।
@Prahari2 жыл бұрын
नमस्ते जी, सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ। संस्कृत की कक्षा 1 जनवरी से चल रही है। दिनांक 1 जनवरी से प्रारम्भ होने वाली संस्कृत कक्षा teachmint एप्लिकेशन पर चल रही है। आप सभी नीचे दिए गए लिंक पर जाकर Teachmint एप्लिकेशन डाउनलोड करें। उसके बाद संस्कृत कक्षा में जाकर नीचे दी गई आई. डी. संख्या लिखें- 882801368 और कक्षा से जुड़ें Teachmint एप्लिकेशन का लिंक👇👇👇 www.teachmint.com/enroll/882801368/61c6d2ee39e0cdd9544df9e7??
@janardhankakde846 Жыл бұрын
Om ka dar vivaran aschyà Laga ,namste.
@sanjeevrastogi6811 Жыл бұрын
Jmjki 🙏 एक बार श्री आशुतोष महाराज जी से किसी ने पूछा- गुरु महाराज जी ,हमारे शास्त्रों में समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है ।परंतु कुछ संत- महापुरुषों ने इस वर्गीकरण का विरोध किया हैं ।तो महाराज जी ने जवाब दिया -एक बार एक कट्टरपंथी ब्राह्मण हमारे पास आए ।उन्होंने हमसे कहा इस समाज में ईश्वर ने चार वर्णों की उत्पत्ति की है ।इसलिए सभी को इस वर्ण व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए। हमने उनसे पूछा -किस आधार पर ईश्वर ने वर्ण व्यवस्था की है ।तो उन्होंने बताया कि ईश्वर के मुख से ब्राह्मण ,भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पदों से शूद्र उत्पन्न हुए हैं ।इसलिए ब्राह्मण उत्कृष्ट हैं और शूद्र निकृष्ट ।तब महाराज जी ने कहा -यदि एक पिता के 4 पुत्र हो ,तो उन पुत्रों की एक जाति होनी चाहिए। इसी प्रकार सब मनुष्यों का पिता एक परमेश्वर है ,तो मनुष्य समाज में भी जाति भेद नहीं होना चाहिए। सभी एक समान ही है ।ना कोई ऊंचा है ,ना नीचा । जिस प्रकार शरीर के सब अंग महत्वपूर्ण है, उसी प्रकार इन अंगों से निसृत सभी मनुष्य भी समान रूप से महिमाशाली हैं। यदि ईश्वर के चरणों से उत्पत्ति होने के कारण कोई निकृष्ट हो जाता है तो गंगा के विषय में आप क्या कहते हैं। क्योंकि हमारे शास्त्र कहते हैं -नारायण के श्री चरणों से गंगा जी की उत्पत्ति हुई ।फिर इस गंगा को देवों के देव भगवान शंकर ने अपने शीश पर स्थान दिया। ऐसा क्यों किया उन्होंने ?इसलिए यह कहना गलत है कि भगवान के चरणों से उत्पन्न होने के कारण शुद्र निम्न है। वास्तव में वर्णों की स्थापना गुण कर्म के आधार पर की गई थी ना किसी अन्य कारण से। ब्राह्मण वर्ग में वे व्यक्ति रखे गए जो चिंतनशील स्वभाव के थे। जो स्वभाव से पराक्रमी और साहसी थे उनको छत्रिय कहा गया। और जिनकी रूचि व्यवसाय में थी उन्हें वैश्य कहा गया। जिन लोगों की रूचि समाज सेवा मे थी उनको शुद्र कहा गया ।जैसे कि इंजीनियर डॉक्टर आदि। जन्म के आधार पर किसी को शूद्र या ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता। यही बात आध्यात्मिक जगत में भी लागू होती है। जब हम पूर्ण गुरु से ब्रह्मज्ञान में दीक्षित होकर आंतरिक जगत में प्रवेश करते हैं तो हमारा सफर भी निम्न प्रवृत्तियों से उच्च चेतना की ओर होने लगता है। ध्यान साधना द्वारा हम जितना जितना अध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करते हैं, आंतरिक आकाश की ऊंचाइयों को छूते चले जाते हैं, उतना उतना हमारे मानसिक दायरे टूटते चले जाते हैं। हमारे मन की संकीर्ण सोच विराट होने लगती है। भेदभाव की सभी दीवारें खत्म हो जाती हैं। हम जान लेते हैं कि हम सभी उस एक परम पिता की संताने हैं ।हममे कोई भेद नहीं। कोई ऊंच-नीच नहीं। एक पिता एकस के हम बारिक। इसलिए हमारे महापुरुषों ने जन-जन को ब्रह्म ज्ञान का उपदेश देकर आत्म उत्थान की ओर अग्रसर किया। जाति के नाम पर समाज को विघटित करना हमारा उद्देश्य नहीं ,बल्कि सभी को आत्म- दर्शन करा कर एक सूत्र में बांध देना हमारा लक्ष्य है ।क्योंकि तभी समाज में शांति की स्थापना हो सकेगी। 🙏🙏🌷🌷🌸🌸🌼🌼🌷🌷🙏🙏
@sanjeevrastogi6811 Жыл бұрын
Jmjki 🙏 एक बार श्री आशुतोष महाराज जी से किसी ने पूछा- गुरु महाराज जी ,हमारे शास्त्रों में समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है ।परंतु कुछ संत- महापुरुषों ने इस वर्गीकरण का विरोध किया हैं ।तो महाराज जी ने जवाब दिया -एक बार एक कट्टरपंथी ब्राह्मण हमारे पास आए ।उन्होंने हमसे कहा इस समाज में ईश्वर ने चार वर्णों की उत्पत्ति की है ।इसलिए सभी को इस वर्ण व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए। हमने उनसे पूछा -किस आधार पर ईश्वर ने वर्ण व्यवस्था की है ।तो उन्होंने बताया कि ईश्वर के मुख से ब्राह्मण ,भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पदों से शूद्र उत्पन्न हुए हैं ।इसलिए ब्राह्मण उत्कृष्ट हैं और शूद्र निकृष्ट ।तब महाराज जी ने कहा -यदि एक पिता के 4 पुत्र हो ,तो उन पुत्रों की एक जाति होनी चाहिए। इसी प्रकार सब मनुष्यों का पिता एक परमेश्वर है ,तो मनुष्य समाज में भी जाति भेद नहीं होना चाहिए। सभी एक समान ही है ।ना कोई ऊंचा है ,ना नीचा । जिस प्रकार शरीर के सब अंग महत्वपूर्ण है, उसी प्रकार इन अंगों से निसृत सभी मनुष्य भी समान रूप से महिमाशाली हैं। यदि ईश्वर के चरणों से उत्पत्ति होने के कारण कोई निकृष्ट हो जाता है तो गंगा के विषय में आप क्या कहते हैं। क्योंकि हमारे शास्त्र कहते हैं -नारायण के श्री चरणों से गंगा जी की उत्पत्ति हुई ।फिर इस गंगा को देवों के देव भगवान शंकर ने अपने शीश पर स्थान दिया। ऐसा क्यों किया उन्होंने ?इसलिए यह कहना गलत है कि भगवान के चरणों से उत्पन्न होने के कारण शुद्र निम्न है। वास्तव में वर्णों की स्थापना गुण कर्म के आधार पर की गई थी ना किसी अन्य कारण से। ब्राह्मण वर्ग में वे व्यक्ति रखे गए जो चिंतनशील स्वभाव के थे। जो स्वभाव से पराक्रमी और साहसी थे उनको छत्रिय कहा गया। और जिनकी रूचि व्यवसाय में थी उन्हें वैश्य कहा गया। जिन लोगों की रूचि समाज सेवा मे थी उनको शुद्र कहा गया ।जैसे कि इंजीनियर डॉक्टर आदि। जन्म के आधार पर किसी को शूद्र या ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता। यही बात आध्यात्मिक जगत में भी लागू होती है। जब हम पूर्ण गुरु से ब्रह्मज्ञान में दीक्षित होकर आंतरिक जगत में प्रवेश करते हैं तो हमारा सफर भी निम्न प्रवृत्तियों से उच्च चेतना की ओर होने लगता है। ध्यान साधना द्वारा हम जितना जितना अध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करते हैं, आंतरिक आकाश की ऊंचाइयों को छूते चले जाते हैं, उतना उतना हमारे मानसिक दायरे टूटते चले जाते हैं। हमारे मन की संकीर्ण सोच विराट होने लगती है। भेदभाव की सभी दीवारें खत्म हो जाती हैं। हम जान लेते हैं कि हम सभी उस एक परम पिता की संताने हैं ।हममे कोई भेद नहीं। कोई ऊंच-नीच नहीं। एक पिता एकस के हम बारिक। इसलिए हमारे महापुरुषों ने जन-जन को ब्रह्म ज्ञान का उपदेश देकर आत्म उत्थान की ओर अग्रसर किया। जाति के नाम पर समाज को विघटित करना हमारा उद्देश्य नहीं ,बल्कि सभी को आत्म- दर्शन करा कर एक सूत्र में बांध देना हमारा लक्ष्य है ।क्योंकि तभी समाज में शांति की स्थापना हो सकेगी। 🙏🙏🌷🌷🌸🌸🌼🌼🌷🌷🙏🙏
@goutamarya7902 жыл бұрын
सादर नमस्ते आचार्य जी।
@sunilmaitri8783 Жыл бұрын
GoodNews
@DevSharmashastri Жыл бұрын
ओ३म्
@as8084 Жыл бұрын
सबका भला करो भगवान सबके कष्ट मिटे भगवान सबको सन्मति दे भगवान सब सुख सच हो सब दुख झूठ धन्यवाद परमात्मा को सब देवी देवता और आत्मा ओंका र को नमो नमः सब जीवो की ओर से जारी
@HSCBM.2 жыл бұрын
Ati Uttam Gurudev ji .🙏 Charansparsh Gurudev.🙌🏽 Ab tak ki sabse achi vyakhya ki hain apne Om ki . Itne videos dekhen maine Om ka arth jan ne ke liye but aapka hi video sabse best hain. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 Ab ache se samaj mein agaya. Dhanyavad Gurudev .🙏🙏🙏🙏
@prernasetiya24962 жыл бұрын
Bahut badhiya hai Ji
@shankarlalshah3355 Жыл бұрын
परमात्मा निराकार है या साकार/
@ramendrasingh5458 Жыл бұрын
🙏🙏
@UmeshRajput-cr1gi Жыл бұрын
Ram Ram Ram thanks very nice
@sanjeevrastogi6811 Жыл бұрын
Jmjki 🙏 एक बार श्री आशुतोष महाराज जी से किसी ने पूछा- गुरु महाराज जी ,हमारे शास्त्रों में समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया है ।परंतु कुछ संत- महापुरुषों ने इस वर्गीकरण का विरोध किया हैं ।तो महाराज जी ने जवाब दिया -एक बार एक कट्टरपंथी ब्राह्मण हमारे पास आए ।उन्होंने हमसे कहा इस समाज में ईश्वर ने चार वर्णों की उत्पत्ति की है ।इसलिए सभी को इस वर्ण व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए। हमने उनसे पूछा -किस आधार पर ईश्वर ने वर्ण व्यवस्था की है ।तो उन्होंने बताया कि ईश्वर के मुख से ब्राह्मण ,भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पदों से शूद्र उत्पन्न हुए हैं ।इसलिए ब्राह्मण उत्कृष्ट हैं और शूद्र निकृष्ट ।तब महाराज जी ने कहा -यदि एक पिता के 4 पुत्र हो ,तो उन पुत्रों की एक जाति होनी चाहिए। इसी प्रकार सब मनुष्यों का पिता एक परमेश्वर है ,तो मनुष्य समाज में भी जाति भेद नहीं होना चाहिए। सभी एक समान ही है ।ना कोई ऊंचा है ,ना नीचा । जिस प्रकार शरीर के सब अंग महत्वपूर्ण है, उसी प्रकार इन अंगों से निसृत सभी मनुष्य भी समान रूप से महिमाशाली हैं। यदि ईश्वर के चरणों से उत्पत्ति होने के कारण कोई निकृष्ट हो जाता है तो गंगा के विषय में आप क्या कहते हैं। क्योंकि हमारे शास्त्र कहते हैं -नारायण के श्री चरणों से गंगा जी की उत्पत्ति हुई ।फिर इस गंगा को देवों के देव भगवान शंकर ने अपने शीश पर स्थान दिया। ऐसा क्यों किया उन्होंने ?इसलिए यह कहना गलत है कि भगवान के चरणों से उत्पन्न होने के कारण शुद्र निम्न है। वास्तव में वर्णों की स्थापना गुण कर्म के आधार पर की गई थी ना किसी अन्य कारण से। ब्राह्मण वर्ग में वे व्यक्ति रखे गए जो चिंतनशील स्वभाव के थे। जो स्वभाव से पराक्रमी और साहसी थे उनको छत्रिय कहा गया। और जिनकी रूचि व्यवसाय में थी उन्हें वैश्य कहा गया। जिन लोगों की रूचि समाज सेवा मे थी उनको शुद्र कहा गया ।जैसे कि इंजीनियर डॉक्टर आदि। जन्म के आधार पर किसी को शूद्र या ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता। यही बात आध्यात्मिक जगत में भी लागू होती है। जब हम पूर्ण गुरु से ब्रह्मज्ञान में दीक्षित होकर आंतरिक जगत में प्रवेश करते हैं तो हमारा सफर भी निम्न प्रवृत्तियों से उच्च चेतना की ओर होने लगता है। ध्यान साधना द्वारा हम जितना जितना अध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करते हैं, आंतरिक आकाश की ऊंचाइयों को छूते चले जाते हैं, उतना उतना हमारे मानसिक दायरे टूटते चले जाते हैं। हमारे मन की संकीर्ण सोच विराट होने लगती है। भेदभाव की सभी दीवारें खत्म हो जाती हैं। हम जान लेते हैं कि हम सभी उस एक परम पिता की संताने हैं ।हममे कोई भेद नहीं। कोई ऊंच-नीच नहीं। एक पिता एकस के हम बारिक। इसलिए हमारे महापुरुषों ने जन-जन को ब्रह्म ज्ञान का उपदेश देकर आत्म उत्थान की ओर अग्रसर किया। जाति के नाम पर समाज को विघटित करना हमारा उद्देश्य नहीं ,बल्कि सभी को आत्म- दर्शन करा कर एक सूत्र में बांध देना हमारा लक्ष्य है ।क्योंकि तभी समाज में शांति की स्थापना हो सकेगी। 🙏🙏🌷🌷🌸🌸🌼🌼🌷🌷🙏🙏
@Shastra_manthan_ Жыл бұрын
बहुत बहुत सुन्दर आचार्य जी ❗
@rameshkamble6848 Жыл бұрын
32 और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा। पवित्र बाइबल यूहन्ना 8:32 सत्य को जानना जरुरी है बाइबल मे लिखा है ढुंडोगे तो पाओगे
@prakashsubhedar1149 Жыл бұрын
इश्वर परमात्मा शिव है। ब्रह्मा विष्णु और शंकर के भी रचैता है।ओम माना आत्मा। परमात्मा भी आत्मा ही है परंतु उनको शरीर नहीं है। निराकार है।हम मनुष्य आत्माओं का यह शरीर है जिसकी मदद से आत्मा कर्म करती है। इसलिए हम साकारी है अर्थात शरीर सहित। परंतु परमात्मा शिव निराकार है। सर्वशक्तिमान है। वहीं आत्मा को शक्ति प्रदान करते हैं। मनुष्य विकारों के कारण अपवित्र शक्तिहीन बन गया है। इसलिए परमात्मा को हम याद करके शक्ति लेते हैं।शरीर को भूलना पड़ता है। अपने को अशरीरी आत्मा समझना होता है।तब हमारे पाप कटते हैं।विकार ही पाप का रूप है। जन्म जन्मांतर हम यह पाप करते आये है। देवी देवताओं में विकार होते नहीं। इसलिए विकारी मनुष्य उनकी पूजा करते रहते हैं। फिर उन्हें अल्पकाल के लिए शान्ति मिलती है। देवताओं को सदाकाल सुख शान्ति होती है।उसको स्वर्ग कहते हैं। अभी हमारे लिए यह नर्क बन गया है। विकारी दुनिया को नर्क और निरविकारी दुनिया को स्वर्ग कहते हैं।और कोई दुनिया होती नहीं। धन्यवाद।
@ushamalik62292 жыл бұрын
आचार्य श्री नमस्ते आयुष्मान भव: सुप्रभात शुभकामनाएं ओ३म् ।
@divyanshnaturals2246 Жыл бұрын
ॐ. देवनागरी का संयुक्ताक्षर है क्या कोई जनेऊधारी बतायेगा कि देवनागरी से पुर्व यह. ॐ किस प्रकार लिखा जाता था सिन्धू सभ्यता का ल मे किस प्रकार लिखा जाता था
@ushamalik62296 ай бұрын
आचार्य जी की आने वाली कक्षाओं उत्तर मिलेगा ओ३म् 🙏🏼 🚩 @@divyanshnaturals2246
@indrajeetkurmi74622 жыл бұрын
om prakriti ki dhvni hai jo maatapita ke rup mai darasyman hai.
@bhishamlal888 Жыл бұрын
Namtosarirdharikahothai
@pratimamishra9399 Жыл бұрын
Namaste ji.
@poonamchandfx Жыл бұрын
thank you so much
@hariomsingh4593 Жыл бұрын
नमस्ते जी आचार्य जी
@omprakashshaw5427 Жыл бұрын
नासा को अंतरिक्ष मे ॐ की ध्वनि सुनाई देता है नासा को किसी घने जंगलों मे झरना के पास बैठना चाहिए। वहां भी कुछ ध्वनि सुनाई देगा खैर शब्दो को ईश्वर से जोड़कर ईश्वर को किया किसी एक समुदाय के लोगों ने खरीद लिया श्रीमन् नारायण नारायण हरि हरि ,जय हनुमान ज्ञान गुण सागर,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ,हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे ना ही अखंड और ना ही हनुमान चालिसा मे ॐ आ रहा है सिर्फ संस्कृत से मंत्र उच्चारण मे ही ॐ या किसी आरती मे ॐ का उच्चारण है ऐसे मे दुसरे भाषाओं से ईश्वर की कोई पहचान ही नहीं रह जाता है।अब आप अपने तर्को से ईश्वर को किसी टापू पर खड़ा करके देखना चाहें तब विश्व का कोई मतलव ही नहीं रह जाता है। सर्वव्यापी से फिर आपका क्या मतलव है।
@rameshkamble6848 Жыл бұрын
बाइबल मे लिखा है 6 यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; यूहन्ना 14:6
@yogeshchitukane715210 ай бұрын
क्या ॐकार परमेश्वरः ने ही धरती पर अवतार भेजे है 🤔
@siberxcreative2067 Жыл бұрын
🌟SATYA NITYA iTi SANATAN☀️ (Topic🔴1:Understanding EK BRAHMA Ditiya NASTI) Akaasat Patitang Toya Jathaa Gaschati Sagaram Sarva Deva Namaskarm *KESHABAm PratiGachati......00 OM KE Kaibalya Datascha SHA Shranagati BA BramhandaNathaya KESHABAya NamoNamaha...01 SATYA e Sri HARI Naameiba TRETAYA ng RAGHU Nandana DWAPAR e Sri KRISHNA Schaiba. KALAHu Khyatastu KESHABA...02 Sri KESHABA=Kaarana.....AVYAKTA Sri KRISHNA=Stula......GOLOK. OM Naad=Shukma.....HIRANYA Gerva. Sri KESHABA Created (One)AnadiPurusha/SRI KRISHNA/MahaVISHNU/SrimanNARAYAN/Supreme Personality of GOD. (Two)AdiSaktiPakruti/SriRADHAA And MahaLAXMI.........GOLOK Universes Originated From GOLOK. Divine Mother Gave Birth ToThree Daities.(SriBrahmaa/Vishnu/Shiva) SriVishnuNarayan+Laxmi....Vaikunta Lok Shiva+Parvati..........Kailash Lok Brahmaa+Savitri.....Brahma Lok. Sri KESHABA All Incarnations=Sri Mina/Kruma/Baraha/Nrushinga/Bamana/Parshuram/Ram/Balaram/Budhaa/Kalki....32/24/DashaAvatar Stotrm. Sri KESHABA=OMTATSAT/SatChitAnanda/SatyaShivaSundara/Stula SukhmaKaarana/Nirgun NirakarNiramaya/AkaalaARupaALekha. ACHYUTA ABYAKTA CHARAMA. Sri KESHABA=OM Naad Brahma=Ek OM Kar Sat Sri Akaal=EK Brahma Ditiya NASTI=ONE ETERNAL GOD Without TWO. 🌟 SANATANA DHARMA=The ETERNAL Law🌟
@PrabhakarSharma-qg4ov Жыл бұрын
Gayatri mantr गायत्री मंत्र जप का भावर्थ #31: 30से ॐ ओ ३..... भू: भाव......🚩🕉️🌄🌻 सत्य सनातन धर्म सत्य सनातन संस्कृति की जय हो 🙏🙏
@mohitmadhup44476 ай бұрын
Om
@prashantgoyal9274 Жыл бұрын
👍
@umeshpatil85672 жыл бұрын
ओम नमस्ते आचार्यजी
@ROSHANKumar-vl6jf Жыл бұрын
🌹🌹🌹🙏🙏🚩
@sunamdebbarma9190 Жыл бұрын
😢❤
@yagyabhushansharma1008 Жыл бұрын
यह सोच कर ही उस महर्षि के प्रति श्रद्धा से सिर झुक जाता है,जिन्होंने सत्य को जानने और प्रचार करने में कितनी विनम्रता और सरलता से अपनी बात रखी है एवम् असत्य का खण्डन किया है। इसके बावजूद कुछ पाखंडी धर्मगुरु उन्हें निष्ठुर और जिद्दी कहते हैं और आर्य समाज को भी गली देते हैं। हे पाखंड और अंधविश्वास में डूबकर दुख उठाने वाले हिंदुओं तुम कितने अभागे हो कि तुम्हें अपने हितैषी की पहचान होती तो तुम दुखी जी क्यों होते?
@divyanshnaturals2246 Жыл бұрын
ॐ. देवनागरी का संयुक्ताक्षर है क्या कोई जनेऊधारी बतायेगा कि देवनागरी से पुर्व यह. ॐ किस प्रकार लिखा जाता था सिन्धू सभ्यता का ल मे किस प्रकार लिखा जाता था