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भावना शुद्ध व निस्वार्थ होनी चाहिए। मन विकारों से मुक्त, व सोच सकारात्मक हुए बिनां, यह शुद्धीकरण असम्भव।
अध्यात्मिक, अन्धविश्वास खत्म होने से पहले, सत्य पर अधारित, अध्यात्मिक विकास सम्भव नहीं।
सच्चा मन, जो मन विकारों से मुक्त हो, जो मन सब में, सब जगह प्रभु को महसूस व अनुभव करें।
*_असली बन्धन मन के, मन के बन्धन के लिए फेरों की जरूरत नहीं। फिर भी समाजिक व्यवस्थाएं व परम्पराओं का उलंघन नहीं करना..._*😊
स्वामी प्रज्ञान पुरी जी महाराज
प्रभु जी
शाश्वत आनंद की और कदम वढ़ने से पहले, हमारे मन का भाव ,वाणी का हर शब्द ,हर कर्म, सत्य पर अधारित होना जरूरी।
जीवन को आनंद से जियो व दुसरों को भी आनंद से जीने दो। अपने में किसी का दखल नहीं, न दुसरों के आनंद में दखल देना।
जीवन आनंद से जीना है।आनंद में ही शरीर छोडना है।अन्तिम समय में आनंदित रह सके, उस की तैयारी करनी होगी।
*_हमारे लिए हर पल उत्सव है, क्योंकि हम हर पल भगवान के साथ आनंद में बिताते है..._*😌
स्वामी प्रज्ञानपुरी जी महाराज
प्रभु जी