वेदों की सच्चाई को हजम क्यों नहीं कर पा रहे स्वामी रामभद्राचार्य ? || By स्वामी सच्चिदानंद जी महाराज

  Рет қаралды 71,967

Arya Samaj Gharaunda

Arya Samaj Gharaunda

Күн бұрын

स्वामी सच्चिदानंद जी महाराज
............................................................................................
अगर वीडियो पसंद आए तो लाइक और शेयर कर प्रोत्साहित
................................................................................................................
भजन व उपदेश के कार्यक्रम की कवरेज के लिए व अन्य वीडियो हमारे पास भेजने के लिए सम्पर्क करें। Arya Samaj Gharaunda | 94162-21119 Whatsapp | Telegram
........................................................................................................................
प्रतिदिन अन्य वैदिक प्रचार के कार्य्रकम देखने के लिए हमारे Arya Samaj Gharaunda के KZbin चैनल से जुड़े।
..............................................................................................................................
..............................................................................................................................
Thankyou For Visit
"Arya Samaj Gharaunda" Channel

Пікірлер: 681
@omyadav1557
@omyadav1557 19 күн бұрын
रामभद्राचार्य जी कथावाचक है और योग्य भी है इसमें संदेह नहीं पर अहंकार जातिवाद राजनीति उनके अंदर कूट कूट कर भरी हुई है,,
@someshrastogi9668
@someshrastogi9668 7 күн бұрын
Swami Sachchidanand ji has explained the whole issue with 100% proof. Unko sadhuvaad.
@technicalsudeshi6897
@technicalsudeshi6897 Ай бұрын
आर्य समाज में महिलाएं भी वेदों में शास्त्रार्थ करने में सक्षम है🙏🙏🚩🚩🚩
@vishramchoudharysaran5653
@vishramchoudharysaran5653 26 күн бұрын
वेदों का अर्थ ही सही नहीं कर रखा है
@vishramchoudharysaran5653
@vishramchoudharysaran5653 26 күн бұрын
ज्ञान चर्चा के लिए कभी भी आ सकते हैं
@lakhvirsingh9492
@lakhvirsingh9492 16 күн бұрын
​@@vishramchoudharysaran5653Dost Dharm Anubav ki baat hai jah Discussion ki sabi sant maha purasho na Practical experience ka bina baat kerna sa mana kerha
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
​@@lakhvirsingh9492साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@kavandesai8459
@kavandesai8459 Ай бұрын
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने हमको सच्चे वैदिक धर्म से परिचय करवाया 🙏
@Kalicharan-z8p
@Kalicharan-z8p Ай бұрын
@@kavandesai8459 उससे पहले क्या कोई जानते नहीं थे भारतवर्ष में क्या एक दयानंद जी ही पैदा हुए ऐसा जानकार व्यक्ति ???
@PankajKumar-yj4ep
@PankajKumar-yj4ep Ай бұрын
To fir vadic ganit(math) kyu nahi padte ho tum dayanand ke chelo
@puranrawat3806
@puranrawat3806 18 күн бұрын
वेद सनातन की जड़ें है, मूल हैं जड़ कटे हुए भटकते रहते हैं । आज फसलें और नस्ले दोनो विकृति और बीमार दवाई पर डिपेंड हैं पर ऑर्गेनिक और मूल बीज जो हाइब्रिड नही हुआ वह स्वस्थ हैं।
@RSB143
@RSB143 15 күн бұрын
​@@Kalicharan-z8p right
@HaridevSharma-rc1jv
@HaridevSharma-rc1jv Ай бұрын
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र और योगेश्वर श्रीकृष्ण जी को महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के आदर्श है। आर्यावर्त भारत के उज्ज्वल रत्न है। जय श्री राम।। जय सत्य सनातन वैदिक धर्म।। आर्य पुत्र।। ❤
@shivanibhooch6182
@shivanibhooch6182 Ай бұрын
जय हो आर्यसमाज दयामनंद सरस्वती की 👌👍💪💪🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 jy हिंदी राष्ट्र 🕉️ नमः शिवाय
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@RamnareshTyagi-x1r
@RamnareshTyagi-x1r Ай бұрын
स्पष्ट है कि भगवान और ईश्वर का का भाव भिन्न है।
@ashokkumararya6806
@ashokkumararya6806 28 күн бұрын
आपका धन्यवाद 🙏 सत्यमेव जयते।। वेद तो सृष्टि के प्रारंभ से हैं। राम और कृष्ण वेद का आचरण करने वाले सर्वश्रेष्ठ महापुरूष थे जो भगवान तो हैं परन्तु ईश्वर नहीं। ।। जय हिन्द।।
@shivanibhooch6182
@shivanibhooch6182 17 күн бұрын
भगवान सहस्त्र नामो मे से भगवान कान ईश्वर भी है भगवान or ईश्वर एक ही है 🕉️ नमः शिवाय.
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
@@shivanibhooch6182 साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
@@ashokkumararya6806 साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@VisheshBadgoti-nw8ir
@VisheshBadgoti-nw8ir 14 күн бұрын
Are bahi kya tum murkh ho Vo iswar bhi te bhagwan bhi te aur h
@shivanibhooch6182
@shivanibhooch6182 14 күн бұрын
@@VisheshBadgoti-nw8ir थे नहीं है ओर अनंत कल तक रहे गे जीका ना अंत है ना आदि है जी अजन्मा है वो है शिव. 🕉️ नमः शिवाय.
@user-pg3bd2oc8q
@user-pg3bd2oc8q 26 күн бұрын
आर्य समाज की जय हो स्वामी दया नन्द सरस्वती की जय हो। बेद सत्य व सनातनी है
@KhemchandVashishth
@KhemchandVashishth Ай бұрын
स्वामी जी ने ईश्वरीय विषय को बहुत अच्छे से समझाया है सत सत नमन
@vinaypandey5038
@vinaypandey5038 Ай бұрын
उनके लिए रामभद्राचार्य जी और आप एक ही हो.. हिन्दू.. जब वह काटने पर आएंगे तो आपको सलाम नहीं करेंगे.... आपस में गणउ-ग़दर बंद करिये.. स्वामी दयानन्द का व्यक्तित्व इतना छोटा नहीं है की किसी के कुछ कहने से मलिन हो जाएगा.... इतनी कठोरता ठीक नहीं है.... आर्य समाज को इस्लाम न बनाइये
@anandsharma9892
@anandsharma9892 9 күн бұрын
@@vinaypandey5038 वह खुद आपस में लड़ मर रहे हैं और यह लोग भी। जी साहेब ने 600 साल पहले ही कहा था कि जब :- कलयुग बीते पचपन सौ पाँचा, तब मेरा बचन होगा साँचा। तेरहवें वंश हम ही चल आवें, सब पंथ मिटा एक पंथ चलावें। (कबीर सागर जो कि धर्मदास जी ने 600 साल पहले लिखा, उससे यह प्रमाणित है, आज 5505 + ही चल रहा है कलयुग) कलयुग 5505 बीत जायेगा तब संत कबीर जी स्वयम आकर सारी दुनिया को कबीर मार्ग पर लगा देंगे। दुनिया में एक ईश्वर एक भक्ति और एक धर्म वही करेंगे। कबीर सागर में बोल कर लिखा दिया। अपने पास रखी गीता जी में आज की संध्या /भक्ति/नियम करते समय जरूर देखिये अद्भुत रहस्य:- गीता अध्याय :- अध्याय श्लोक 👇 👇 10 श्लोक 2 :- ऋषियों की स्थिति 4 श्लोक 34:- तत्वदर्शी संत की महिमा 15 श्लोक 1 :- तत्वदर्शी संत की पहिचान 18 श्लोक 46:- सबसे बड़े ईश्वर की महिमा 16 श्लोक 34 :- शास्त्र विधि से हटने से नुकसान 7श्लोक 23,29 :- देवताओं और गीता ज्ञान दाता के आगे 9 श्लोक 21 :- महास्वर्गों से बापस आने का प्रमाण 8 श्लोक 13 :- ओम् मंत्र बृह्म का जो पूर्ण नहीं 17 श्लोक 23 :- इसमें पूर्ण परमात्मा का मंत्र जो केवल तत्वदर्शी संत बताएगा नोट :- आत्मा परमात्मा में विलीन नहीं होगी क्योंकि यह वेद या गीता शास्त्र में कहीं नहीं लिखा ऐसे गहरे रहस्य शास्त्रों से जानने और ज्ञान गंगा बुक मंगाने के लिए पूरा पता :- मोबाइल नम्बर :- हमें कमेंट में लिखकर भेजिये #गीता_तेरा_ज्ञान_अमृत (रामपाल जी संकलन कर्ता हैं)
@ShriRamPutra
@ShriRamPutra 13 күн бұрын
अंत मे यही कहूंगा अलग अलग समाज बना कर सनातन का बटवारा ना करे, अलग पंत में बटे सभी हिंदुओ को भगवा के तले जोड़ कर पुनः सनातन धर्म सनातन समाज की स्थापना करें प्रचार करे इसी में समस्त हिंदुओ का उद्धार है,जय श्री राम🙏🏼🚩
@yograjtbopche4139
@yograjtbopche4139 Күн бұрын
Jay shri Ram
@mahendersingh988
@mahendersingh988 Ай бұрын
नमस्ते स्वामी जी 🙏🙏🙏🙏🙏 युग प्रवर्तक महर्षि देव दयानन्द सरस्वती जी अमर रहें।
@raghabasahu1922
@raghabasahu1922 Ай бұрын
Sadara namaste Swamiji Maharaj 🙏🙏🙏❤️❤️🥀🌹🌹🌹👍
@kamlaupreti9567
@kamlaupreti9567 Ай бұрын
जय हो सत्य सनातन धर्म की🌷🌷🚩🚩
@RSB143
@RSB143 15 күн бұрын
😅😅😅😅 joker mu shnkr
@drsubal82
@drsubal82 Ай бұрын
नमस्ते स्वामीजी🙏 ओ३म्
@gyansaxena4030
@gyansaxena4030 Ай бұрын
जब ये स्वीकार कर रहे हैं कि स्वामी दयानंद ने सभी को वेदों का सिद्धांत समझाया और उससे हिंदू धर्म की उन्नति हुई तो उसी वैदिक सिद्धांत को मानने में इनका कौन सा अहंकार सामने आ रहा है ? महर्षि दयानंद ने एक बात कही थी जो जिसका रामभद्राचार्य जीवंत उदाहरण हैं , उन्होंने कहा था की “ मनुष्य का आत्मा सत्य असत्य को जानने वाला होता है किन्तु अविद्या हठ, दुराग्रह या अपने किसी प्रयोजन को प्राप्त करने के लिए सत्य स्वीकारने से इंकार कर देता है” इनको अविद्या भी है, हठ भी और अपनी दुकान चलाने का प्रयोजन भी।
@BeniPrasadAgarwal
@BeniPrasadAgarwal Ай бұрын
आर्य समाज एक श्रेष्ठ समाज है स्वामी दयानंद सरस्वती जी एक श्रेष्ठ ऋषि थे शत शत नमन।
@ramsinghchauhan1936
@ramsinghchauhan1936 29 күн бұрын
मैं स्वयं भी 5 साल तक आर्य समाज मंदिर में रहा हूं ऐसी बात और ऐसा शब्द कहीं नहीं है कि राम को और कृष्ण को नहीं मानते हैं जयकारे भी लगाते हैं मर्यादा पुरुषोत्तम राम चन्द्र की जय कितनी बड़ी बात यह कि गऊ माता की जय सभी संतों की जय मैं आर्यरामभद्राचार्य जी का भी सम्मान करता हूं मगर आर्य समाज के विषय ये टिप्पणी उन्होंने गलत कि है।
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
@@ramsinghchauhan1936 आपने जयगुरुदेव जी की फोटो लगाई है। बताओ शाकाहरी पत्रिका 7 सितंबर 1971 में जय गुरुदेव ने कहा था कि जो सब संसार को ज्ञान देगा वह महापुरुष आज 20 बर्ष का हो गया। बताओ कौन 1951 में जन्म लिए थे। साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@PraveenKumar-go2uy
@PraveenKumar-go2uy Ай бұрын
रामभद्राचार्य जी कुछ अच्छा बोला करो जब राम को कृष्ण को मानने वाला ही समाप्त हो रहा है इस दुनिया से तो फिर आप ही कैसे बचोगे उच्च शिक्षा दो भविष्य में जो हिंदू लड़ सके और अपने आप को अपनी बहनों को बेटों को माता को बचा सके भारत माता कोबचा सके
@balwansingharya3786
@balwansingharya3786 Ай бұрын
À😊
@SandhyaRani-ev3yk
@SandhyaRani-ev3yk 29 күн бұрын
Samapta ho rahe??? Kya matlab he???
@satyavirsingh9326
@satyavirsingh9326 Ай бұрын
महर्षि दयानंद सरस्वती जी जय हो वैदिक ही सत्य है
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@rakeshvishwakarma2563
@rakeshvishwakarma2563 Ай бұрын
परमात्मा ही ईश्वर है, और कण-कण में व्याप्त है, अगम है, अपरिभाषित है । भगवान, देवी देवता, ब्रह्मऋषि, दानव, यक्ष आदि वर्तमान समय के शंकराचार्य, जगत्गुरू, महात्मा, साधु, संत, ऋषि, मुनि ये सभी पद हैं, और परिभाषित हैं ।
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@vaidikdharm1118
@vaidikdharm1118 25 күн бұрын
।।ओ३म्।। सादर नमस्ते आचार्य जी 🙏🙏🙏, बहुत ही बारीकी से जानकारी देते हुए,
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
@@vaidikdharm1118 साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@nareshsinghyadav3964
@nareshsinghyadav3964 Ай бұрын
राम जी और कृष्ण जी दोनो एस्वरीय शक्ति है इन दोनों के चरित्र को अपनाने से ही कल्याण है केवल इनके चित्र पर ना जाएं
@user-pi7ct4yl7p
@user-pi7ct4yl7p Ай бұрын
सत्य वचन
@rajneeshawasthi3284
@rajneeshawasthi3284 Ай бұрын
लेकिन इनके चरित्र चित्रण में जो शास्त्रों के माध्यम से मिलावट की गयी है उसका क्या करेंगे इस पर भी तो कुछ बोले
@lokeshthakur808
@lokeshthakur808 Ай бұрын
श्री राम कृष्ण जी स्वयं भगवान हैं।
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
​@@lokeshthakur808साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@RamPrasad-wi9fr
@RamPrasad-wi9fr 25 күн бұрын
यह आपके साथ 10 मिनट भी नहीं टिक पाएंगे स्वामी महाराज
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
@@RamPrasad-wi9fr साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@abfinancialservices2065
@abfinancialservices2065 10 күн бұрын
सनातन धर्म के सभी अंगों को कोमिलकर सनातन धर्म पर आने वाले व्यक्तियों से लड़ना चाहिए ना कि एक दूसरे की टांग खींचकर दूसरों को अपने ऊपर हंसने का मौका देना चाहिए
@user-pz2ig4br8m
@user-pz2ig4br8m Ай бұрын
Mahrshi Dayanand ki Jay
@nawalchaudhary8401
@nawalchaudhary8401 Күн бұрын
भगवान राम और कृष्ण तो वेदों के भी प्राण हैं।
@nareshsinghyadav3964
@nareshsinghyadav3964 Ай бұрын
जय हो जय आर्य समाज
@pratibhasinghal3323
@pratibhasinghal3323 Ай бұрын
स्वामी सच्चिदानंद जीने रामभद्राचार्य द्वारा महर्षि दयानंद पर लगाए गए सभी आरोपों का एक एक करके सटीक उत्तर दिया और शास्त्रार्थ सार्वजनिक स्थान पर होगा रामभद्राचार्य जी के आश्रम पर नहीं |बिल्कुल सही है| मैं भी महर्षि दयानंद पर लगाए गए आरोप से बहुत दुखी हूं {आर्य समाज का संगठन इस आरोप को हटाने के लिए पूर्ण रूप से संगठित रहे| डॉ प्रतिभा सिंघल संरक्षिका आर्य समाज अवंतिका गाजियाबाद{
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@Rajendraprasad-m2x
@Rajendraprasad-m2x 4 күн бұрын
भई हिंदुओं के रक्षक है आर्यसमाजी हिंदू आर्य में अंतर कैसा सारे आर्यसमाजी जी-जान लगायें हैं सनातन हिंदूधर्म बुतपरस्ती पत्थरमूर्तिपूजा ढोंग आडम्बर भगवा छुआछूत ऊंच-नीच गैरबराबरी अस्पृश्यता जातिवाद जात-पात नफ़रत ज़हर बैरभाव वैमनस्यता नृशंसता वहसीपन हवसीपन शोषण यौन-शोषण झूठ ठगी काफ़िर पामर दैत्य दस्यु बेअदबी क्रूरता को बचाने में...
@pabitrakumarghadai496
@pabitrakumarghadai496 Ай бұрын
🙏सादर प्रणाम स्वामीजी महोदय
@spiritedsprout
@spiritedsprout 24 күн бұрын
महाराज जी, स्वामी रामभादराचार्य जी ने कर भी दी कथा तो कौनसा पहाड़ टूट जायेगा। किसी माध्यम से आपस मे जुड़े रहना तो है ही आवश्यक।
@NareshKumar-kd5bh
@NareshKumar-kd5bh Ай бұрын
आर्य समाज जिंदाबाद हमे एक दिन आर्य समाज के अनुसार चलना होगा। आर्य समाज प्रमाणित बात करता है । आर्य समाज भगवान राम कृष्ण को मानते है । सनातन धर्म के सच्चे रक्षक है आर्य समाज। देश भक्त है आर्य समाज। रामभदराचारय को भुल स्वीकार करना चाहिए। हठठी जिद्दी गुस्सा सन्त का काम नही होता। स्वामी दयानंद सरस्वती को कोटी कोटी नमन।
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@HaridevSharma-rc1jv
@HaridevSharma-rc1jv Ай бұрын
राम भद्राचार्य काकभुशुण्डि जी है और आगे भी रहेंगे। सत्य कथा जो समझ ना पाये हंस बनै नहीं काग कहाये।। लौमश ऋषि के वचन ना मानै काकभुशुण्डि भये जग जाने।। आर्य पुत्र।।
@RSB143
@RSB143 15 күн бұрын
❤ right inko rambhdra jee jese GURU SANT ki mhtaa nhi ptaa inke bhgay abhi soye huye hai
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
कारभुसुंडि ने वेद ज्ञान नहीं लिया था। साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@murlidhar_radhe_krishna
@murlidhar_radhe_krishna 15 күн бұрын
ये पाखण्डी कहां से बीच में कूद पड़े हैं। जिन्हें व्याकरणादि का व वर्ण उच्चारण करने का वोध नहीं है वह वेद मंत्रों की व्याख्या कर रहे हैं।
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
@@murlidhar_radhe_krishna जो भगवान को देखेगा वही भगवान की व्याख्या करेगा। कोई नशेड़ी भांग का शौकीन हो, जो ईश्वर को देख ही न पाया, वह कैसे व्याख्या करेगा। स्वांस स्वांस में नाम जपो, वृथा स्वांस न खोये, न जाने इस स्वांस को, आवन होए न होए। कबीर वाणी कबीर बीजक :- साखी (343) जो कहते हैं ईश्वर निराकार है उनको :- 1. ढूंढ़त ढूंढ़त ढूँढिया, भया तो गूना गून ढूंढ़त ढूंढ़त न मिला, हारी कहा बेचून ( निराकार)। बीजक साखी 345 2. सोई नूर दिल पाक है, सोई नूर पहिचान, जाके किये जग हुआ, सो बेचून ( निराकार) क्यों जान। (ईश्वर साकार है कबीर साहेब का ज्ञान) बे चूने जग चूनिया, साईं नूर निनार। आखिरता के बखत में, किसका करो दीदार। कबीर बीजक ( वसंत) 12 छाड़हु पाखंड मानहु बात, नहीं तो परबेहु जम के हाथ। कहें कबीर नर कियो न खोज, भटक मुअल( मरा) जस वन का रोज ( नील गाये) । थे फिर क्यों ईश्वर के पास न रहे , इतने प्राणी किस गलती से जन्म मरण में फंसे? (संत रामपाल जी महाराज द्वारा संकलित ) इन प्रश्नो के उत्तर जाने पढ़िए नि शुल्क फ्री पुस्तक ज्ञान गंगा ला जबाब पुस्तक 📘📘📘📘📘📘📘📘 हम सभी देवी देवता ओं की भक्ति करते हैं फिर भी दुखी क्यो? ईस. कौन है? ईश्वर कौन है? परमेश्वर कौन है? परम +आत्मा =परमात्मा कौन है? वह कौन सी भक्ति है जिससे समस्त दुखों का नाश होता है? सच्चा संत गीता के वेद शास्त्र अनुसार कैसा होता है ? मीराबाई का मोक्ष कैसे हुआ ? बृह्मा जी की आयु 50 बर्ष हो गई और आज तक हम इन भक्तियों को करते आ रहे फिर भी आज तक हमारा मोक्ष क्यों नहीं हुआ ? यदि हम ईश्वर में ही तो विलीन थे फिर क्यों ईश्वर के पास न रहे , इतने प्राणी किस गलती से जन्म मरण में फंसे? (संत रामपाल जी महाराज द्वारा संकलित ) इन प्रश्नो के उत्तर जाने पढ़िए नि शुल्क फ्री पुस्तक ज्ञान गंगा 📘📘📘 आप को 15/से 30 दिन मे होम डिलेवर कर दी जाबेगी आप अपनी ये जानकार हमें दे 👇 1) मोबाइल नंबर :-.......... 2) नाम :-.......... s/o ....... 4) गांव/शहर :-.......... 5) जिला :-.......... 6) राज्य :-.......... 7) पिन कोड :-..........
@anandsharma9892
@anandsharma9892 9 күн бұрын
@@murlidhar_radhe_krishna जब जबाब नहीं तो लोग ऐसी बात करते हैं। साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@ShriRamPutra
@ShriRamPutra 13 күн бұрын
रामभद्राचार्य जी महाराज श्री चरणों मे कोटि कोटि प्रणाम, 33 कोटि देवी देवताओं की जय हो, दूसरी बात you ट्यूब you ट्यूब ना खेलो अगर थोड़ा बहुत मस्तिक में दिमाग है तो महाराज जी के समक्ष जाकर प्रश्नोत्तरी करो, देखलो भाइयो इस बंदे की मोटर साईकिल भी मूर्ति पूजा को पाखंड बताने पर आ कर रुक गई भाई तू होता कोन है हमे बताने वाला की हम अपने आराध्य को किस रूप में पूजे,जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तेसी, जय हो सत्य सनातन धर्म की जय श्री राम, जय हो भगवान श्री रामजी के द्वारा स्थापित रामेश्वरम जी की🙏🏼🚩
@raghuveerdancharan8915
@raghuveerdancharan8915 18 күн бұрын
वैद मे अवतार नही माना।कोई बात नही।पर वैद मे यह तो हैना सब कुछ मे ही हु।तो फिर कैसा बखेङा।राम हो चाहै करषण सभी भगवान ही हुए
@KamalBiswakarma-hb3ny
@KamalBiswakarma-hb3ny 26 күн бұрын
Shree guru ji bhagwan ki Charan me sashtang dandwat parnam.
@sadhnaaryarana2983
@sadhnaaryarana2983 Ай бұрын
🙏 आचार्य जी बड़ी ख़ुशी होती है जब आप हमें इतना बारीकी से समझाते हो ईश्वर करे इस दुनिया का हर इंसान आर्य समाजी बन जाए ईश्वर करे वो दिन जल्दी आए ओर बुराई का नाश हो जाए
@mohanlalarypushp5886
@mohanlalarypushp5886 29 күн бұрын
भाई इसके लिए प्रयास करना होगा जैसे इन स्वामी सच्चिदानंदजी एवं उनके जैसे कुछ और विद्वानों नेअपनी जान हथेली पर लेकर वेद का सत्य का प्रचार प्रसार करने का बीड़ा उठाया है हम चाहे बहुत बड़े विद्वान नहीं है, चिंटू विचारों से प्रभावित है जानते हैं तो फिर हमें मजबूत कार्यकर्ता बनना चाहिए! पूरा समय नहीं दे सकते तो वर्ष में 10 दिन ही निकाल कर हम गांव गांव जाकर वेद प्रचार करें! इसके साथ ही आवश्यक है कि हम अपना चरित्र व्यवहार दिनचर्या, सुखी संतुष्ट पारिवारिक सामाजिक व्यवहार आदि एक पवित्र रखें कि भगवान रामकृष्ण तो बहुत बड़ी बात वे हमारे जैसे आर्य जनों का ही उदाहरण देने लगा जाए!
@agyeshsaxena2518
@agyeshsaxena2518 23 күн бұрын
कभी नहीं बन सकते जो हमारी संस्कृति पर सवाल उठाते हैं और इसी कारण ये पहले भी संकुचित थे और आज भी
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
​@@mohanlalarypushp5886जी आज सोशल मीडिया हर आदमी के हाथ में मोबाइल के द्वारा है। कहीं न जाओ। घर बैठो मेरी तरह प्रचार करो वेद का एक एक आदमी के फेसबुक, ट्विटर इंस्टा, यू ट्यूब पर।
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
​@@mohanlalarypushp5886साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@suresharya2138
@suresharya2138 Ай бұрын
Maha Rishi Dav Daya Nand Ki Jai,,,, Arya Samaj Amar Raha,,,,, Ved ki Joti Jalati Raha
@pattirammaurya6103
@pattirammaurya6103 Ай бұрын
राम भद्राचार्य जी मर्यादापुरुषोत्तम राम योगेश्वर कृष्ण दोनों के गुण,कर्म, स्वभाव सारस्वत हैं।
@raghuveerdancharan8915
@raghuveerdancharan8915 18 күн бұрын
संत संत लङे ईस से बङा मुरख कोइ नही
@ajaysaini8759
@ajaysaini8759 27 күн бұрын
सनातनी भाइयों स्वामी जी हमें बांटने की कोशिश कर रहे हैं सनातन की दो शाखाएं निराकार ब्रह्म की उपासना और साकार ब्रह्म की उपासना है हमें कोई आपस में कोई भी बात नहीं रहा है
@somprakash5503
@somprakash5503 Ай бұрын
तुम ईश्वर को साकार न मानने वाले, बरसों इसी इसी अंदेशे में रहे कि ईश्वर केवल निराकार है। अब मुश्किल ये है कि ईश्वर को अब साकार कैसे कह दें। शायद तुम्हे मालूम हो कि पहले जगद्गुरु शंकराचार्य(जो निराकार के उपासक माने जाते थे)जी के द्वारा ही चारों धामों में प्रतिमा स्थापित की गई हैं।
@Gurubachan688
@Gurubachan688 4 күн бұрын
Omm
@ajaysaini8759
@ajaysaini8759 27 күн бұрын
स्वामी जी दयानंद के समय के बाद आपने कितने हिंदुओं की घर वापसी कराई है आपके सानिध्य में रहने वाला कन्वर्ट आवश्यक हो जाएगा
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
जी आर्य मत, जैन, बौद्ध और अन्य दार्शनिक मतों से किसी धर्म में नहीं बदलेंगे लोग बल्कि धीरे धीरे इनके कारण लोग नास्तिक हो रहे हैं आज। साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@dhruvpatel9648
@dhruvpatel9648 Ай бұрын
स्वामी दयानन्द सरस्वती जी राम और कृष्ण को कल्पित नहीं मानते थे ब्लकि इतिहास मानते तो थे मग़र उन्हें परमात्मा का अंश भी नहीं मानते थे वो आम मनुष्य थे और वो भारत का ऐतिहासिक पुरुष थे पर मेरा मानना ये हे की ऐसा सही नहीं हे की एक मनुष्य सर्वज्ञ हो हों सकता है की वो वहा तक नहीं पहुच सके क्युकी उन समय पर बहुत स्वामी हुवे और उन्हें अलग अलग दर्शन हुवे रामकृष्ण मिशन,स्वामी नारायण,इस्कॉन, मोक्ष मार्गी .....etc उनकी हरएक मत की अलग अलग मान्यता थीं
@shardabansal7391
@shardabansal7391 Ай бұрын
राम राम जी।ये कलियुग है क्लिक अवतार होगा वो त्रेता युग था राम जी ने अवतार लिया था। क्योंकि पहले जन्म में मां कौशल्या और दशरथ जी ने बड़ा तप किया था। भगवान को अपने पुत्र के रूप में प्राप्त करने के लिए आज है कोई जो इतना तप कर सके वो आज भी प्रगट हो सकतें हैं।
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@poojasachdeva7556
@poojasachdeva7556 29 күн бұрын
मेरी बहन की शादी आर्य समाजियो मे हुई और मेरी मूर्ति पूजको के यहाँ तो क्या हम दोनो बहने नही रही क्या हमारा रिशता खत्म हो गया ऐसे ही दौ बहने है आर्य समाज और मूर्ति पूजा ।
@hindustanhamara-
@hindustanhamara- 24 күн бұрын
हिन्दू धर्म किसी एक समय में ठहरा हुआ धर्म नहीं है। यह लगातार विकसित होता धर्म है। अगर इसे वेद तक ही सीमित कर दिया जाय तो फिर इस्लाम और हिन्दू धर्म में क्या अंतर रह गया।
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
वेद तक सीमित कर दिया जाए। इस पर फिरसे बिचार कीजिये। क्या कभी वेद पढ़े आपने, नहीं। वेद से आगे धरती पर विचार करने योग्य है ही क्या। अभी तो वेद के आस पास भी नहीं पहुंचा हिंदू मानव समुदाय। साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@roshanbaba425
@roshanbaba425 11 күн бұрын
आपने बेहतरीन तरीके से अपनी बात रखी । मैं आपको प्रणाम करता हूं
@Chandangoyal-re7xq
@Chandangoyal-re7xq Ай бұрын
Swami ji ko kotti kotti naman
@DhanrajSharma-ij9pt
@DhanrajSharma-ij9pt 29 күн бұрын
गुरू जी प्रणाम विश्वकर्मा भगवान कि जय
@surendersharma2835
@surendersharma2835 14 күн бұрын
Vishv कर्मा भगवान् कोन थे
@bablubhaigadwali
@bablubhaigadwali 8 күн бұрын
Adhik jaanakari ke liye padhe pustak gyan ganga ,,,sat saheb
@singingstarsudhirsharma5827
@singingstarsudhirsharma5827 Ай бұрын
जैसे सिख धर्म उस वक्त की जरूरत थी जो हिंदू धर्म पर अत्याचार के विरुद्ध खड़ा हुआ था । वैसे ही विद्वानों के वक्तव्य सुनकर मैं समझता हूं आर्य समाज आज की जरूरत है । मै मन से आर्य समाज को अपना चुका हूं आर्य समाज के गुरुकुल संस्कृत महाविद्यालय से मैं एक ट्यूटर (गणित का अस्थाई अध्यापक) के रूप में अपना कार्य शुरू करने जा रहा हूं । Satyarthparkash मुझे sd college muzaffarnagar से प्राप्त हो गया है ।अब मैं विधिवत आर्य समाजी होने जा रहा हूं थोड़ा ब्राह्मणों और आर्य समाज के विधि विधान हवन ,यज्ञ, संध्या करने में थोड़ा अंतर है पर वो ज्यादा बड़ी समस्या नहीं है । ओम
@ashokdhiman4316
@ashokdhiman4316 Ай бұрын
आप अच्छा कर रहे हैं, आर्य समाज की यज्ञ पद्धति वही है जो भगवान श्री राम चंद्र और श्री कृष्ण चन्द्र जी की थी। पूर्ण वैदिक।
@shikharrastogi3901
@shikharrastogi3901 27 күн бұрын
हमारा सनातन धर्म मुर्ति पुजा पाठ पर आधारित है। इस पर किसी प्रकार का विवाद नहीं होना चाहिए। इस पर विवाद निन्दनीय है। हमरा सनातन धर्म किसी का विरोध नहीं करता है। और हम चाहते हैं।मेरी मूर्ति पूजा पर कोई व्यक्ति आक्षेप नहीं लगायें। जय श्री राम जय श्री कृष्णा जय हनुमान
@omkareswaranandswamiji576
@omkareswaranandswamiji576 6 күн бұрын
जय जय श्री राधे कृष्ण पाखंडी है रामभद्राचार्य ये न राम को जानता है न रामायण को न श्री राम भक्ति को, ऐसे पाखंडियों ने ही हिन्दू के हिन्दुत्व की गलत व्याख्या कर जाति वाद पार्टी वाद पाखंड वाद और तथाकथित धार्मिक उन्माद फैलाया है हिन्दुत्व की रक्षा हेतु इसको बहिष्कृत और दण्डित करना अनिवार्य है।
@bhagvati-ml6wj
@bhagvati-ml6wj 29 күн бұрын
बिबाद वह कर्ता है जोमाया को देखता है जो येक भगवान कोही सिर्फ देखता है उसे माफी मंगवाना बडा पाप है जय गुरु देव
@ajaysaini8759
@ajaysaini8759 27 күн бұрын
हम प्रभु को किस रूप में मानते हैं यह हमारी आस्था का विषय है आप हमारी आस्था पर प्रहार ना करें स्वामी जी आप हिंदुओं को कंफ्यूज करने की कोशिश ना करें
@Veda99
@Veda99 11 күн бұрын
भगवान को मानना काफी नहीं है भगवान को जानना जरूरी है। आप मे से भगवान को जानता कौन है।
@puranrawat3806
@puranrawat3806 18 күн бұрын
राम और कृष्ण, चेतना की उच्चतम शिखर हैं उस काल में। वे परम ब्रह्म को जानकर , समर्पित होकर ब्रह्म शक्तियों को पा गए। राम कृष्ण भी वेदों की शिक्षा दीक्षा लिए थे।
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@user-cc3nn7hv4g
@user-cc3nn7hv4g Ай бұрын
भारत में साकार और निराकार दोनों ही रूप गीता में कहे हैं उद्धव निर्गुण निराकार का उपासक थे।
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
उद्धव को वेद ज्ञान नहीं था। साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@siyaramyadav685
@siyaramyadav685 Ай бұрын
आप सही कह रहे हैं ❤
@UrmilaDeviKushwah
@UrmilaDeviKushwah Ай бұрын
Shri ram ji Shri krishan ji hamare purvaj hain or ye ham per nirbhar hain ki bhagwan kahye mahapursh kahye mariyada purshutam kahye or ram ji ne avtar kahye Liya janam Liya ek hi baat hain jo jan hit main paropkar or jinki mariyada dil ke darwaje ko khat khata de bo bhagwan hi hain
@rohitkidiary1319
@rohitkidiary1319 19 күн бұрын
Satya sanatan dharm ki jai ho
@newdawn5946
@newdawn5946 26 күн бұрын
बहु ब्रह्माण्ड वाद ( ब्रह्माण्ड से परे ब्रह्मांड:: अर्थात अन्नत ब्रह्मांड) की थ्योरी यदि प्रमाणिक हो जाती जैसे कि अपेक्षा है । तो ! जो 13.67 अरब सालों से पहले ब्रह्मांडों को बना और बिगाड़ रहा था वही ईश्वर है। जो हमारे सूर्य मंडल की उप्पत्ती (6.5 अरब साल) से पहले ब्रह्मांड की सत्ता चलाता आ रहा था वह ईश्वर है । जो पृथ्वी की उप्पत्ती (4. 54 अरब साल) से पहले ब्रह्मांड को चलाता आ रहा है वह ईश्वर है । जो मानव प्रजाति ( पूरी छः उपजातियां) 20 लाख साल पहले ब्रह्मांड को चलाता आ रहा है वह ईश्वर है। जो होमोसैपियन्स ( 2 लाख साल ) से पहले ब्रह्मांड को चलाता आ रहा है वह ईश्वर है। जो सभ्यताओं ( 10 हजार) के निर्माण से पहले ब्रह्मांड को चलाता आ रहा है वह ईश्वर है। ईश्वर वह : ईश्वर से ईश्वर पैदा नहीं होता। अर्थात वह किसी का माता या पिता नहीं है। ईश्वर को किसी ने पैदा नहीं किया अर्थात उसका कोई माता या पिता नहीं है। ईश्वर को सक्रिय बने रहने के लिए किसी बाह्य ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती है अर्थात उसकी ऊर्जा किसी भी रूप में परिवर्तित नहीं होती है। वह जो निराकार है और रहेगा, वह जिसको अपनी सत्ता के लिए किसी असिस्टेंट की आवश्यकता नहीं है, वह जो अन्नत है, वह जिस पर Classical Physics या Quantum physics का कोई नियम लागू नहीं होता और भी बहुत कुछ;;; ईश्वर है । ई
@thewayoflife1912
@thewayoflife1912 Ай бұрын
गुरुदेव आप bhi mere लिए आदरणीय है, राम भद्रा चार्य जी का मै समर्थन नहीं करता पर, राम कृष्ण ki मूर्ती ने मुझे निजी अनुभव दिए है, आप तो प्रेत का bhi inkar करते है maine अपने होश हवास मे देखा है, कृष्ण का अनुभव किया है, mere क्षेत्र ke दिव्य ऋषि श्री नील कंठ महराज थे, पूर्ण वैरागी ek धोती मे तपस्वी थे, aur vo राधा कृष्ण उपासक थे, 🙏🙏 राम कृष्णा महापुरुष नहीं दिव्य है, 🙏🙏
@user-jf4jd7pe1j
@user-jf4jd7pe1j Ай бұрын
ये तप तो आप भी कर सकते हैं भाई ये मुद्दा दूसरा है, आप भी पुरुषार्थ से महात्मा बन सकते हो अभी भी। 🙏 आपके अंदर सत्यता चाहिए
@thewayoflife1912
@thewayoflife1912 Ай бұрын
@@user-jf4jd7pe1j तप शक्ति शाली बन सकते है, पर महातमा बनते तो रावण, कुंभरकरण, और सैकड़ो असुर न बनते सभी ने तप ही किया था, पर दुरात्मा बने 🙏 मुद्दा वही है, अन्यथा एक ही शिव, एक ही राम एक ही कृष्ण, एक ही हनुमान क्यों हुए, अब तक असंख्य न सही पर लाखों शिव राम कृष्ण बजरंग होने चाहिए थे, यही गूढता है,
@ZEE45816
@ZEE45816 Ай бұрын
शुद्धि आन्दोलन स्वामी दयानन्द ने चलाया ये तो तुमको पता है पर तुमको ये नहीं पता की स्वामी रामानन्द जी ने परावर्तन संस्कार चला कर अनेक मुसलमानों को वापस सनातन धर्म में लाए दयानन्द से बहुत पहले
@ajaysaini8759
@ajaysaini8759 27 күн бұрын
एक तरफ आप रामकृष्ण को मानने की बात करते हैं दूसरी तरह उनकी लीलाओं का उपवास भी उड़ाते हैं
@jsrinivasnaidu7413
@jsrinivasnaidu7413 Ай бұрын
99% Hindu don't know Dharma
@DhanrajSharma-ij9pt
@DhanrajSharma-ij9pt 29 күн бұрын
विश्वकर्मा भगवान कि जय
@user-yh6kc9yx5f
@user-yh6kc9yx5f 11 күн бұрын
महर्षि दयानन्द युगप्रवर्तक और सनातन के सच्चे योद्धा है अमर है
@munnalal-ui6lb
@munnalal-ui6lb Ай бұрын
राम एक नहीं है राम चार हैं। एक राम दशरथ का बेटा एक राम घट घट में लेटा एक राम का सकल पसारा और एक राम इस जग से न्यारा।। जो जग से नहीं आ रहा है वही पूर्ण ब्रह्म सच्चिदानंद है। जिसके स्वप्न में संसार बनता और मिलता है वह पूर्ण ब्रह्म सच्चिदानंद के सत अंग अक्षर ब्रह्म है। बाकी दो राम त्रिलोकीनाथ विष्णु भगवान का अवतार
@ajaysaini8759
@ajaysaini8759 27 күн бұрын
वेद प्राचीन है तो क्या पुराण उपनिषद रामायण महाभारत और अन्य शास्त्रों का कोई महत्व नहीं है स्वामी जी आप सनातन के मर्म को पूर्ण रूप से जानते नहीं है
@ajaysaini8759
@ajaysaini8759 27 күн бұрын
स्वामी जी आप संतो को गलती मनवाने का ही काम करते रहें आपके पास और कोई काम है है ही नहीं
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@SURESHKUMARPANDEY99
@SURESHKUMARPANDEY99 19 күн бұрын
Maharaj.sppke.perbachan.se.dil.gad.gsd ho..gaya.laken.bahut.mahatma.sant.bahut.fakte.hsi
@bhuvanrajan8477
@bhuvanrajan8477 13 күн бұрын
बदमाश पढ़ोत्तरा है न साधू है न संत
@bittu4224
@bittu4224 15 күн бұрын
Ram
@TirruGamer
@TirruGamer 23 күн бұрын
वो देख नहीं सकते ! वो हमेशा सच बोलते हैं 💸💸💸 वो शादी में भी जाते हैं पैसों वाले के घर 💸💸💸
@Umashankar007-t7f
@Umashankar007-t7f 15 күн бұрын
वेदो को पुनर्जीवित करने वाले सही सनातन धर्म को मानने वाले दिशा देने वाले अपना पुरा जीवन सनातन को समर्पित करने वाले दयानन्द सरसावती भला भगवान को ना माने येसा कैसे होसकता है
@anandsharma9892
@anandsharma9892 15 күн бұрын
@@Umashankar007-t7f साकार और अवतार पर मतदान प्रश्न 1:- नीचे दिये गए मिश्रित गद्यांश और पद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये। :- कृप्या पढ़ें ऋग्वेद मण्डल (A) :- 9 सुक्त 1 मंत्र 9 में जो निम्न हैं:- अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। अभी इमम्-अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम् सोमम् इन्द्राय पातवे। (उत) विशेष कर (इमम्) इस (शिशुम्) बालक रूप में प्रकट (सोमम्) पूर्ण परमात्मा अमर प्रभु की (इन्द्राय) सुखदायक सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर की (पातवे) वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति (अभी) पूर्ण तरह (अध्न्या धेनवः) जो गाय, सांड द्वारा कभी भी परेशान न की गई हों अर्थात् कुँवारी गायों द्वारा (श्रीणन्ति) परवरिश की जाती है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 में) जब परमात्मा दूसरी प्रकार का शरीर धारण करके अर्थात् शिशु रूप धारण करके पृथ्वी पर प्रकट होता है उस समय उनके पालन की लीला कंवारी गौवों द्वारा होती है। भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआा बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है सुख-सुविधा के लिए जो आवश्यक पदार्थ शरीर वृद्धि के लिए चाहिए वह पूर्ति कुँवारी गायों द्वारा की जाती है अर्थात् उस समय (अध्नि धेनु) कुँवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। यही प्रमाण पवित्र ‘‘कबीर सागर’’ नामक सद्ग्रंथ में है। जो आदरणीय धर्मदास जी द्वारा लगभग सन् 1500 के आसपास लिखा गया था। कबीर सागर के अध्याय ‘‘ज्ञान सागर‘‘ में पृष्ठ 74 पर लिखा है। (B):- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18 ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।। ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।। अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है। (C) :- परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक है ईश्वर। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ है परमेश्वर (असि) है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। प्रश्न (क) :- उपर के गद्यांस में वेद वाक्यों के अनुसार ईश्वर अवतार लेते हैं तथा आर्य समाज के अनुसार ईश्वर अवतार नहीं लेते कौन सही है, (l) वेदमत या (ll) आर्य मत ? प्रश्न (ख) :- क्या दयानंद जी की बात सही है कि ईश्वर निराकार है या वेद की बात सही है कि ईश्वर साकार ( अग्ने तनुर असि) है? (l) वेद वाक्य या (lll) दयानंद जी (ग) . ईश्वर पाप नाश करते हैं किसने कहा? (I) वेद ने (II) दयानंद जी ने कृपया उत्तर दें, सही उत्तर देने वाले को ईश्वर के ज्ञान का विशेष उपहार फ्री दिया जायेगा।
@layakdass1746
@layakdass1746 28 күн бұрын
रामकृष्ण परमहंस जी के सनमुख दयानंद तब आया था जब उसने आर्यसमाज नहीं बनाया था न वेद के अनुवाद किए थे।रामकृष्ण परमहंस जी ने दयानंद के बारे कहा था कि ये व्यक्ति हृदय में दम्भ रखता है ये आगे चल कर अपना कोई पंथ चलाना चाहता है। ये व्यक्ति वेदों का मनमाना अनुवाद करेगा।
@anukumari835
@anukumari835 15 күн бұрын
Raam krishna paramhansh ko gyan kaise prapt huaa padha hai kabhi sirf kalpna me jeene wale murkh 😂
@ajaysaini8759
@ajaysaini8759 27 күн бұрын
हम किसी भी संत की निंदा नहीं करते हैं क्या दयानंद के अतिरिक्त कोई भी महान संत नहीं हुआ है
@ajaysaini8759
@ajaysaini8759 27 күн бұрын
स्वामी जी हम जब स्वामी दयानंद की निंदा नहीं करते हैं तो आप भी किसी पौराणिक संत की निंदा ना करें
@mathsrajivtechnical7750
@mathsrajivtechnical7750 27 күн бұрын
क्यों ना करे भाई
@kaviKabir.
@kaviKabir. 27 күн бұрын
अनंत ब्रह्मांड को चलाने वाला अगर धरती पर अवतरित हो गया तो फिर वहां कौन चलाएगा😂😂😂 अपनी छोटी सोच से ईश्वर को समझो.... वहां का क्या मतलब है और अगर ईश्वर इतना ताकत वर नहीं है तो वो ईश्वर नही है
@Itz_adarshshukla_98765
@Itz_adarshshukla_98765 11 күн бұрын
Woh khud ko anek roop m bna skta h murkh ye smjh pehle
@ramagupta7769
@ramagupta7769 Ай бұрын
बहुत ही ज्ञानवर्धक
@differentgamesgameplay5383
@differentgamesgameplay5383 Ай бұрын
Swami ji aaram karo ab
@chandankumarsastaulhindu
@chandankumarsastaulhindu Ай бұрын
Arya samaj Ram Bhagwan krishn Bhagwan mante Hain
@kaviKabir.
@kaviKabir. 27 күн бұрын
भगवान तो मनुष्य की रचना है अगर भगवान की मूर्ति जैसी भी बनाए आपको क्या
@user-ur5ju6bw5x
@user-ur5ju6bw5x 29 күн бұрын
पुराणिक बात प्रमाणिक नहीं शास्त्रार्थ करने से दुथ का दुध पानी का पानी हो जाएगा ये रामभद्राचार्य सत्य सनातन परमात्मा को न जाना है न जानते हैं अवतार जन्म का नाम है वैदो में सर्व व्यापक परमात्मा को बताया है जो सत्य सनातन है। नमस्ते ओ३म्
@awadheshramanpratapbahadur362
@awadheshramanpratapbahadur362 Ай бұрын
राम भद्राचार्य भगवान को सगुण रूप में मानते हैं।
@max444yt3
@max444yt3 Ай бұрын
RIGVED 6.47.18 YAJURVED 31.19 RIGVED 3.3.27.3 ATHARVED 12.1.48 VARAH KA VARNAN RIGVED1.12.17 VAMAN AVATAR
@Maan_gaming_9928
@Maan_gaming_9928 24 күн бұрын
ਦੇਸ ਕਾ ਗਦਾਰ ਗਰੀਬ ਜਨਤਾ ਕਾ ਦੁਸ਼ਮਣ ਇਸ ਲੀਏ ਤਾ ਜੇ ਅੰਨਾ ਹੈ ਇਸਕੋ ਫਾਂਸੀ ਲਗਾ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਏ ਜੇ ਹਰਾਮ ਕਾ ਝੂਠਾ ਦਗੜ ਦੱਲਾ ਟੈਂਪਲ ਹਾਂ
@subhadrabhajanmandali83
@subhadrabhajanmandali83 Ай бұрын
आर्य समाज जिंदा बाद जय हो आर्य समाज कि स्वामी जी को मेरा नमस्कार ❤❤
@pokhpal6355
@pokhpal6355 13 күн бұрын
मुझे तो ऐसा लगता है कि स्वामी दयानन्द जी का आर्य समाज श्री रामभद्राचार्य से भयभीत हो रहा है बाकी आर्य समाज जाने. ...
@user-pq7et2dr1c
@user-pq7et2dr1c 7 күн бұрын
आर्यसमाज ने सबसे अधिक क्रान्तिकारी देश की स्वतन्त्रता के लिए दिए
@jamilkhan8409
@jamilkhan8409 26 күн бұрын
अंधा विद्वान, अंधर गुरु, बहीर चेला, मांगे आम,बहावै ढेला
@vishramchoudharysaran5653
@vishramchoudharysaran5653 26 күн бұрын
अगर आप के पास ज्ञान होता तो सन्त रामपाल जी महाराज 2009सै आप को चुनौती दे रहे हैं ज्ञान चर्चा करने से डर क्यों रहे हैं दम है तो ज्ञान चर्चा करो नहीं तो मुर्ख वना कर दुकानें चलाते रहो
@ajaysaini8759
@ajaysaini8759 27 күн бұрын
स्वामी जी वेदों और पुराणों में आपस में कहीं भी विवाद नहीं है स्वामी जी आपको शर्म आनी चाहिए किसी संत को क्षमा मांगने के लिए कहते हैं
@vidhyasagargautam1421
@vidhyasagargautam1421 Ай бұрын
वेद, रामभद्राचार्य जी को बहुत अच्छे आचार्य की शरण में जाकर पढ़ना उचितमार्गदर्शन है इसमें ही आचार्य रामभद्राचार्य जी की भलाई है पहले जाने माने और फिर उसके बाद में अपने विचारों को व्यक्त करें। वेदों के बारे में आचार्य रामभद्राचार्य जी को ज्ञाननहीं है, उन्हें वेद अवश्यपढ़ने चाहिए
@AjayRajput-hl3so
@AjayRajput-hl3so Ай бұрын
रामभद्राचार्य जी ने जो बोला वह अपनी जगह सही है या गलत है किंतु आपके बाल की खाल निकालने की कोई जरूरत नहीं आपके बाल की खाल निकालने की कोई जरूरत नहीं है कुछ हद तक रामभद्राचार्य जी भी गलत है कुछ हद तक दयानंद सरस्वती भी गलत रहे क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम राम और श्री कृष्णा हमारे धर्म और भारतीय संस्कृति के दो ऐसे महापुरुष हैं जिनके आदर्शके ऊपर हिंदू धर्म और संस्कृति की 99 आपको बोल के बाल झड़ने की कोई जरूरत नहीं है
@RajKumar-j4f1k
@RajKumar-j4f1k 29 күн бұрын
दयानंद जी जैसा कोई वेदों का ज्ञाता और‌। ज्ञषि नहीं हुयै है
这三姐弟太会藏了!#小丑#天使#路飞#家庭#搞笑
00:24
家庭搞笑日记
Рет қаралды 120 МЛН
Underwater Challenge 😱
00:37
Topper Guild
Рет қаралды 48 МЛН
ये क्या कह दिया डॉ. आयुषी राणा ने || Arya Samaj
21:54
Arya Samaj आर्य समाज
Рет қаралды 210 М.