Рет қаралды 5,751
भारतीय मध्यकाल के इतिहास में जो घालमेल है, व्यथित कर देता है। कभी कभी यह लगता है कि भारत का इतिहास उसके शत्रुओं द्वारा ही तो नहीं लिखा गया, इससे कोई अंतर नहीं पड़ा कि बात आजादी से पहले की हो रही है अथवा बाद की। मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकों में गोर वंश अथवा मुहम्मद गौरी के विषय में जो विशेषण प्रयुक्त किये गए है, लगाता है जैसे वह आक्रांता न हो कर भाग्यविधाता हो? क्या गोरी केवल और केवल जीतता ही रहा? यदि नहीं तो वे वृतांत कहाँ हैं जब जब मुहम्मद गोरी की भारत भूमि में मरम्मत हुई है? कितने लोग यह जानते हैं कि नायकी देवी नाम की एक वीरांगना ऐसी भी थी जिसने मुहम्मद गोरी के दर्प का ऐसे ही दमन किया था जैसे किसी विषैले सांप का फन कुचला जाता है। आज जब मैं यह विषय आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ तब आश्चर्य व्यक्त करने से स्वयं को रोक नहीं पा रहा कि भारतीय इतिहासकारों की ऐसी क्या बाध्यता थी कि मुहम्मद गोरी की विजय गाथाएं तो दस्तावेजीकृत की गयीं लेकिन नायकी देवी को ऐसे उपेक्षित कर दिया गया मानो वह कोई इतिहास सम्मत पात्र ही न हों?