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यह अपार हर्ष का विषय है कि पाँच सौ वर्षों की प्रतीक्षा के पश्चात् अब श्रीराम जन्मस्थान को उसका वांछित सम्मान लौटाया जा सका है। यह लड़ाई केवल धार्मिक महत्ता की नहीं है, इसका सांस्कृतिक महत्व कहीं अधिक है। यदि भारत वर्ष के संदर्भ में कैसे इतिहास का विकृतिकरण और वामपंथीकरण किया गया, इसे समझना है तो बारीकी से राम श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को आरंभ से इसकी परिणति तक समझना होगा। अगले कुछ कार्यक्रमों में हम उस इतिहास की चर्चा करेंगे जिसका संबंध रामजन्मभूमि से है। रामजन्मभूमि के संदर्भ में हम उन वामपंथी इतिहासकारों की दलीलों पर एक एक कर चर्चा करेंगे जो माननीय सर्वोच्च न्यायालय में झूठ का पुलिंदा सिद्द हुई। मैं स्पष्टत: कहना चाहता हूँ कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर परिसर पर बाबर-मीर बाकी का आक्रमण हुआ यह अतीत की बात हो गई लेकिन इस पवित्र और ऐतिहासिक स्थल पर वामपंथी इतिहासकारों और साहित्यकारों ने दूसरा और अधिक क्रूर आक्रमण किया था। आज पहली कड़ी में बात करते हैं मुगल लुटेरे और आक्रांता बाबर और उसके सिपहसालार मीर बाकी की, जिसके नाम और कुकृत्य के कारण पाँच सौ वर्षों तक एक विवादित ढांचा विद्यमान रहा।
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