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क्या आप जानते हैं कि भारत भूमि पर अरब के मुसलमानों की कुदृष्टि कब कब पड़ी, उसके क्या क्या परिणाम रहे। यह बात है, सातवी सदी की, जबकि भारत के विभिन्न बंदरगाहों पर अरब व्यापारियों की आवाजाही बनी हुई थी, रेगिस्तान में जहां घाँस भी न उगती हो वहाँ की बहुतायत आवश्यकताओं की पूर्ति भारतीय बंदरगाहों से ही संभव हो सकती थी। इन आपूर्तियों के लिए तब देवल, थाना, खंभात, सोपारा, मैसूर, मालाबार तथा कन्याकुमारी के बंदरगाह महती भूमिका निभा रहे थे। सोने की चिड़िया को लूटने का खयाल तब शक्तिशाली होते अरब-इस्लामिक आक्रान्ताओं के मन में प्रबल हो उठा। इस इच्छा के पीछे प्रेरक विचारधारा इस्लाम का विस्तार थी। हमें संज्ञान में लेना होगा कि इसी धार्मिक साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा के कारण अपने अभ्युदय के केवल साठ वर्ष के भीतर इस्लाम पूर्वी दिशा में चीन से आरंभ कर पश्चिम के स्पेन तक विस्तार पा चुका था। “पुलकेशिन की मार” से ले कर “गधे की खाल में भरे मुहम्मद बिन कासिम” तक विस्तार से इस वीडियो में।
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