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Acharya Bharat Bhushan Gaur
ब्राह्मण गोत्रों में आस्पद भी होते हैं बहुत से बंधु नहीं जानते कि आस्पद क्या हैं प्रस्तुत वीडियो में हम इसी विषय पर प्रकाश डालेंगे ।
आस्पद
” आस्पदम् प्रतिष्ठायां ”
(पाणिनि अष्टाध्यायी, अध्याय-6,पाठ-1,सूत्र-146)
आस्पद प्रतिष्ठा पाने को कहते हैं। वेद-विज्ञानी गोत्र प्रवर्तक ऋषियों की संतति ने अपने समृद्ध ज्ञान-विज्ञान से अपने लोकजीवन में जो पद-प्रतिष्ठा प्राप्त की वह आस्पद (Surname) नाम से प्रसिद्ध है।
उदाहरण - विदुआ, दुबे, तिवारी, चौबे, पटैरिया, रिछारिया, अरजरिया, गंगेले, बबेले, शुक्ल, दीक्षित आदि…..।
” ब्राह्मणो जानपदाख्यायाम् ”
(पाणिनि अष्टाध्यायी, अध्याय -5,पाठ-4,सूत्र-104)
भावार्थ :- ब्राह्मण का जनपद (निवास-स्थान) नाम से भी ख्याति (प्रसिद्धि/आख्या/सूचना/अल्ल) होती है।
अध्यापन का कार्य - उपाध्याय
तांत्रिक - ओझा
ज्योतिष ज्ञान - जोशी
वेद - द्विवेदी, दुबे
दीक्षा देने वाले - दीक्षित
वेदाचार्य कथा वाचक - पाठक
अनेक विधाओं में पारंगत - मिश्र
चार वेद - चतुर्वेदी, चौबे
तीन वेद - त्रिवेदी, त्रिपाठी, तिवारी
शास्त्र विशेष को पढ़ाने - पांडेय, पंड्या
राजघराने के गुरु-रावल, राजपुरोहित, उप्रेती, राजगुरु
शुक्ल यजुर्वेद उप जीवक - शुक्ला
यज्ञ करने का कार्य - यज्ञिक, बाजपेई
अग्निहोत्र करने वाले - अग्निहोत्री
सभी ब्राह्मणों के लिए संज्ञा- शर्मा
वेदों के तीन पाठों (अध्याय) का अध्ययन करने वाले त्रिपाठी कहलाए। त्रिपाठी और तिवारी एक ही उपनाम है बस अंतर इतना है कि त्रिपाठी तत्सम शब्द है और तिवारी तद्भव शब्द है। जबकि त्रिवेदी उपनाम उपर्युक्त से भिन्न है तीन वेदों का अध्ययन करने वाले त्रिवेदी कहलाए। त्रिकालिक पूजा का श्रेय त्रिवेदी को जाता है।
आस्पद का अर्थ कार्य होता रहा है, जिस कार्य को करने वाले होते थे उसी को उस आस्पद के नाम से पुकारा जाता था। जब तक वर्णव्यस्था रही यह आस्पद कार्य के अनुसार चले उसके बाद यह जन्म से माना जाने लगा। आज भी इस गुण के आधार पर ही आस्पद चल रहे हैं।
गोत्र --
गोत्र का अर्थ है कि वह कौन से ऋषिकुल का है या उसका जन्म किस ऋषिकुल से सम्बन्धित है। किसी व्यक्ति की वंश-परम्परा जहां से प्रारम्भ होती है, उस वंश का गोत्र भी वहीं से प्रचलित होता गया है। हम सभी जानते हैं की हम किसी न किसी ऋषि की ही संतान है, इस प्रकार से जो जिस ऋषि से प्रारम्भ हुआ वह उस ऋषि का वंशज कहा गया ।
विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्त्य की संतान गोत्र कहलाती है। आस्पद का अर्थ है उपाधि जो सरनेम हम लगाते है। जैसे मेरा #मिश्रा। सभी आस्पद का एक संदेश है। हमारे पूर्वजों को को कार्य मिला उसके अनुसार आस्पद मिले। मिश्र श्रुति और स्मृति दोनों में परिपक्व थे इसलिए मिश्र अर्थात दोनों विधाओं के जानकारों को मिश्र कहा गया, बाद में मिश्रा हो गया। इसमें भोजन बनाना, संगीत में रुचि, और अनेकों कार्यों के विशिष्टता रखते थे। जिन ब्राह्मणों में गायन की विधा थी उन्होंने सामवेद ही चुना। अधिकांश मिश्रा के मुख्य वेद सामवेद होते है जिनको गाया जाता है। इसलिए मिश्र परिवार में गायन भी बहुलता से पाया जाता है। जड़ों से जुड़े रहना आवश्यक है। यही ब्राह्मण की पहचान बनाए हुए है