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बौद्ध कवि अश्वघोष के सौन्दरनन्द महाकाव्य के आठवें सर्ग (स्त्रीविघात अथवा स्त्रीविघ्न) में एक बौद्ध भिक्षु स्त्रियों की घोर निन्दा करता है। बौद्ध भिक्षु सुन्दर नन्द की प्रिया की तुलना कुत्ते की उलटी से करता है। वह स्त्रियों की विषैली लताओं और साँप से भरी गुफाओं से उपमा देता है और उन्हें अनार्य और दुष्ट कहता है। बौद्ध भिक्षु कहता है स्त्रियों की बातों में मधु पर हृदय में हलाहल विष होता है। स्त्रियों के चरित्र पर घोर आक्षेप लगाकर बौद्ध भिक्षु कहता है स्त्रियों का हृदय अमङ्गलमय और शरीर बुराइयों का झरता हुआ घर है। बौद्ध भिक्षु स्त्रियाँ को पुराने टूटे-फूटे बरतन जैसी झरती हुई बताकर अपवित्र कहता है।
ध्यातव्य: इस चलचित्र का उद्देश्य किसी वर्ग, समुदाय अथवा मत के लोगों की भावनाएँ आहत करना नहीं है, अपितु केवल ज्ञानवर्धन है।
0:00 भारतवर्ष की विडम्बनाएँ
1:14 सौन्दरनन्द महाकाव्य की परिचय
2:08 आठवें सर्ग का प्रसङ्ग, सुन्दर नन्द का दुःख
4:48 बौद्ध भिक्षु का उत्तर
6:05 नन्द की कुत्ते और उसकी प्रिया की कुत्ते की उलटी से उपमा
8:21 बौद्ध भिक्षु द्वारा स्त्रियों की घोर निन्दा
21:00 उपसंहार
सूर्यनारायण चौधरी कृत हिन्दी अनुवाद सहित सौन्दरनन्द महाकाव्य का आठवाँ सर्ग:
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