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" संसद को नजारों "
यह एक समसामयिक विषय की राजस्थानी भाषा की कविता है जो कि पति पत्नी के संवाद से चलती है और जो पत्नी रोजमर्रा की अखबार में, टीवी पर, वह लोगों के द्वारा सुनी हुई बातों को अपनी कविता में जो देखती है सुनती है उस है पिरोया गया है।
आम आदमी का भी यही मानना है की संसद एक ऐसी पवित्र जगह है जहां पर हमारे संविधान के द्वारा की गई निर्मित पहल को सुचारू रूप दिया जाता है।
वह देश हित में कार्य घर में होते हैं ।लेकिन कहा जाता है कि एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। कई नेताओं के द्वारा ऐसे कार्य किए गए हैं जो कि उन्हें नहीं करने चाहिए। फिर क्या लोगों की सोच में वैसी ही भावना पनप रही है यह कविता भी एक मनोरंजन दृश्य को दर्शाती है वह जो देखा जाता है वही लिखा जाता है।
'संसदीय' शब्द का अर्थ ही ऐसी लोकतंत्रात्मक राजनीतिक व्यवस्था है जहां सर्वोच्च शक्ति लोगों के प्रतिनिधियों के उस निकाय में निहित है जिसे संसद कहते हैं भारत के संविधान के अधीन संघीय विधानमंडल को संसद कहा जाता है भारतीय संसद राष्ट्रपति और दो सदनों राज्यसभा और लोकसभा से मिलकर बनती है।
#कविदामोदरदाधिच #भंवरजीभंवर