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इस विषय पर चर्चा करने की वजह है सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों, पारसियों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाली केंद्र की 26 साल पुरानी अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट का साफ कहना है कि समूहों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के लिए धर्म को भारतीय परिदृश्य में देखा जाना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। इस याचिका में किसी समुदाय की राज्यवार आबादी के आधार पर अल्पसंख्यक का दर्जा देने के संबंध में दिशा-निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। पीठ ने कहा कि धर्म को पूरे देश के परिदृश्य में जोड़ कर देखा जाना चाहिए। सीजेआई ने कहा, धर्म राजनीतिक सीमाओं को नहीं मानता है।
याचिकाकर्ता के अनुसार, देश के आठ राज्य लक्षदीप..मिजोरम..नागालैंड...मेघालय..जम्मू कश्मीर,,अरूणाचल प्रदेश मणिपुर, और पंजाब में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। उपाध्याय के अनुसार, लेकिन उनके अल्पसंख्यक अधिकार वहां बहुसंख्यक लोग अनाधिकृत तरीके से ले रहे हैं, क्योंकि केंद्र ने उन्हें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून की धारा 2 (सी) के तहत अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया है। इस कारण ये लोग संविधान के अनुच्छेद 25 और 30 के तहत मिले अधिकारों से वंचित हैं। तो आज सुप्रीम कोर्ट के रूख को समझने का प्रयास होगा साथ ही समझने की कोशिश होगी कि कौन है अल्पसंख्यक और क्या कहती है केंद्र सरकार की 1993 की अधिसूचना
Anchor: Ghanshyam Upadhyay
Guest- Pradeep Kumar Singh, Senior Journalist
Vijai Trivedi, Senior journalist
Kapil Sankhla, Advocate, Supreme court