दुखती रग पर अंगुली रखकर, पुछ रहे हो कैसे हो तुमसे ये उम्मीद नहीं थी दुनिया चाहे जैसे हो एक तरफ मैं बिल्कुल तन्हा एक तरफ दुनिया सारी अब तो जंग छिड़ेगी खुलकर ऐसे हो या वैसे हो जलते रहना चलते रहना तो उसकी मजबूरी है सूरज ने ये कब कब चाहा था उसकी किस्मत ऐसे हो मुझको पार लगाने वाले जाओ तुम तो पार लगो मैं तुमको भी ले डूबूंगा कश्ती चाहे जैसे हो ऊपर वाले अपनी जन्नत और किसी को दे देना मैं अपने दोजख में खुश हूं , जन्नत चाहे जैसे हो