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आदिवासियों एवं अन्य परंपरागत वनवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय से उन्हें मुक्ति दिलाने और जंगल पर उनके अधिकारों को मान्यता देने के लिए संसद ने दिसम्बर, 2006 में अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) कानून { The Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers (Recognition of Forest Rights) Act, 2006, } पास कर दिया था | केन्द्र सरकार ने इसे 1 जनवरी 2008 को नोटिफाई करके जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू कर दिया
वनाधिकार कानून 2006 के अनुसार 13 दिसंबर, 2005 से पूर्व वन भूमि पर काबिज अनुसूचित जनजाति के सभी समुदायों को वनों में रहने और आजीविका का अधिकार मिला है पर दूसरी ओर कानून की धारा 2 (ण) के अनुसार अन्य परम्परागत वन निवासी को अधिकार के लिए (उक्त अवधि से पहले वन क्षेत्र में काबिज रहे हो) तीन पीढ़ियों (एक पीढ़ी के लिए 25 साल) से वहां रहने का साक्ष्य प्रस्तुत करना होता है.
भारत के संविधान में अनुसूचित जनजातियों के लोगों के खिलाफ भेदभाव को रोकने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कई प्रावधान हैं। अन्य बातों के साथ-साथ कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान इस प्रकार हैं:
धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के निषेध से संबंधित अनुच्छेद 15;
सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता से संबंधित अनुच्छेद 16;
अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने से संबंधित अनुच्छेद 46;
अनुच्छेद 335 अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सेवाओं और पदों के दावों से संबंधित है। #examracehindi #UPSC #ugcnet