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एनसीईआरटी द्वारा सातवीं, आठवीं, दसवीं और ग्यारहवीं कक्षाओं के इतिहास तथा समाजशास्त्र के पाठ्यक्रम में बदलाव किया गया है। मुख्य बदलाव कक्षा बारहवी की इतिहास पाठ्यपुस्तक के हड़प्पा सभ्यता संबंधित ‘ईंटे, मोती और हड्डियां’ शीर्षक वाले पाठ में किया गया जिसके अंतर्गत राखीगढ़ी में हालिया डीएनए अध्ययन पर चर्चा करते हुए तीन नए अनुच्छेद शामिल किए हैं। सम्मिलित अंश आर्य आप्रवासन के सिद्धांत को खारिज करते हैं। इसके साथ ही हड़प्पा और वैदिक लोगों के बीच संबंधों पर और शोध करने, इस विषय पर विद्वानों की बहस को स्वीकार करने और छात्रों के बीच आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देने का आह्वान भी पाठ में किया गया है। ये परिवर्तन तो अवश्यंभावी थे, तथापि इसे ले कर लाल खेमें में बिलबिलाहट क्यों है, इसे समझिये। वस्तुत: भारतीय इतिहास में सप्रयास प्रविष्ट कराया गया सबसे शातिर एजेंडा है “आर्य आक्रमण थ्योरी”, और इस बार इसे ही ठिकाने लगाया गया है। पाठ्यक्रम में हुए बदलावों का विरोध दो मुख्य कारणों से हो रहा है पहला कि भारतीय वामपंथी अब भी आर्य आक्रमण थ्योरी के पक्ष में खड़े हैं, इसका ध्वस्त होना उनके नैरेटिव के नष्ट होने जैसा है। दूसरा वे हड़प्पा संभयता, वैदिक सभ्यता और सांस्कृतिक निरन्तरता को किसी तरह मान्य नहीं करना चाहते। यही दोनों पक्ष आज के वक्तव्य में मैं स्पष्ट करने जा रहा हूँ।
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