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आज एक बार फिर हम बात करने जा रहे हैं महाकाव्यों के युग और उनकी ऐतिहासिकता पर। इस आलेख और कार्यक्रम को आपके समक्ष प्रस्तुत करने के लिए मैंने मुख्य रूप से वाल्मीकी रामायण, महाभारत तथा डॉ. पद्माकर विष्णु वर्तक की पुस्तक “स्वयंभू” में प्रस्तुत विवेचनाओं का सहारा लिया है। विषयारम्भ इस उक्ति के साथ कि भारत उन्नत और असंख्य साहित्य की धरती है। प्रगतिवाद और प्रयोगवाद के नाम पर खिलवाड़ कर कर के वामपंथियों के कविता विधा की हत्या कर दी है, अन्यथा एक समय यह विधा हमारी संप्रेषणीयता का सबसे शक्तिशाली माध्यम हुआ करती थी। कविता ही वह माध्यम थी जिससे विद्वानों ने संदेश प्रसारित किये, साहित्यकारों ने अपनी कल्पनाशीलता को पंख दिए और तत्कालीन इतिहासकारों ने कालखण्ड और घटनाक्रमों को प्रस्तुत किया है। ऐसे ही इतिहास लेखन का हमारे दो महान महाकाव्य रामायण और महाभारत उदाहरण हैं।
मेरी पुस्तक "बस्तर से गुजरते हुए" का लिंक -
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