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भारत के इतिहास को मुसलमान आक्रान्ताओं के गौरवगाथा की तरह क्यों लिखा गया है, क्या इस प्रश्न का उत्तर किसी के पास है? वे आक्रांता जिन्होंने भारत का धर्म, मंदिर, संस्कृति और सभ्यता, सबकुछ कूरता के साथ नष्ट किया है, उनकी बनाई गई सल्तनते हमारे पाठ्यक्रमों का अनिवार्य हिस्सा बनी रहीं, लेकिन क्यों? जबकि उसके समानांतर भारतीय शासन और शासित क्षत्रों पर न्यूनतम बात की जाती है, इसके क्या कारण हैं? वस्तुत: इतिहास को स-प्रयास गंगा-जमुनी बनाने और दिखाने के चक्कर में सत्य का निर्दयता से गला घोंटा गया है। यही कारण है कि सिंध पर प्रमुखता से बात राजा चच और दाहिर के माध्याम से होनी चाहिए तो हम लुटेरे मुहम्मद बिन कासिम का जीवन परिचय घोंटते रहते हैं; जबकि अरब आक्रमण अल्पकालिक अवधि में केवल सिंध तक सीमित रहा था। इस अवधि में में कासिम और उसके साथ आए लुटेरों ने सिंध परिक्षेत्र की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान को तहस-नहस कर यहाँ इस्लाम का बलपूर्वक प्रचार प्रसार किया। भारत की ओर मुसलमान आक्रान्ताओं की कुदृष्टि आगे भी बनी रही, अरबों के पश्चात यह भूमिका तुर्कों ने अपने हाथों में ले ली थी।