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महाभारत की इस श्रंखला में हम महाकाव्य में परिलक्षित इतिहास के विभिन्न पक्षों की विवेचना कर रहे हैं। बात महाकाव्य की है इसलिये कविता और बिम्ब क्या होते हैं इससे भी हमें अवगत रहना चाहिये। महाभारत महाकाव्य में अंतर्निहित बिम्बों को मिथक कहने और मानने से पहले हम प्रस्तुत विषयवस्तु को समझने के लिये महाकवि जयशंकर प्रसाद की एक चर्चित कविता का उदाहरण लेते हैं। ये पंक्तियाँ सभी ने कभी न कभी सुनी-पढी होगी - “बीती विभावरी जाग री। अम्बर पनघट में डुबो रही, ताराघट उषा नागरी” अर्थात यहाँ महाकवि जयशंकर प्रसाद प्रकृति का मानवीकरण करते हुए उषा का चित्र खींच रहे हैं। कवि ने यहाँ भोर के समय को पनघट पर जल भरती हुई स्त्री के रूप में चित्रित किया है। अब किसी भी तर्कशास्त्री की यहाँ बन नहीं सकती क्योंकि न तो उषाकाल की बेला स्त्री है, न वह घडा थाम सकती है न ही जल भर कर ला सकती है। तथापि स्त्री के रूप में भोर के इस बिम्ब के कारण हम समय-विशेष को अपने सामने साकार पाते हैं। यही कारण है कि महाभारत की विवेचना करते हुए बिम्बों को ले कर हमें सावधान रहने की आवश्यकता हो जाती है जहाँ अनेक प्रकरणों, विशेषताओं अथवा घटनाक्रमों को स्पष्ट करने के लिये इसी प्रकार के प्रतीकों-बिम्बों का प्रयोग किया गया है। यदि हम शब्दार्थ को ग्रहण करते हैं तो वह मिथक है और भावार्थ की ओर जाते हैं तो विषयवस्तु की गहराई को ग्रहण करने में सक्षम हो जाते हैं। इसी भूमिका के साथ साथ हम महाभारत के आदिपर्व के अनुक्रमणिका पर्व की ओर चलते है जहाँ जनमेजय द्वारा किये जाने वाले नागयज्ञ की चर्चा से विषयवस्तु का आरम्भ होता है।