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झलक एक किशनगढ़ इतिहास की 1611 ईसवी सन में यशस्वी राजा किशन सिंह जी द्वारा स्थापना हुई। दिन बड़ा पावन था मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस यानी कि बसंत पंचमी के दिन किशनगढ़ की स्थापना हुई , शिक्षा कला संस्कृति में अपना स्थान विभिन्न आयाम वह उद्योग लेकर आज 5 फरवरी 2022 को हम 411 स्थापना दिवस मनाने जा रहे हैं।
अरावली पर्वतमाला उद्गम और दिल्ली पर्वतमाला की समाधि स्थल राजपूताना में राठौड़ वंश नाम अग्रणी है और सदैव रहेगा यहां पर वल्लभ संप्रदाय की महत्ता रही है राजवंश इससे जुड़ा हुआ रहा है राजा श्री किशन सिंह जी से लेकर आज ब्रजराज सिंह जी तक की 20 वीं पीढ़ी का सफर जारी रहा है उसमें सभी के पद राजा, महाराजा की पदवी से सम्मानित रहे हैं सबका अपना गौरव गान रहा है। यहां पर साहित्य की बात करें तो सभी राजा महाराजाओं की साहित्य में भरपूर रुचि रही है कहा जाता है कि पुराने शहर की स्थापना महाराजा किशन सिंह जी द्वारा की गई थी वह नया शहर बहादुर सिंह जी ने बसाया था गुन्दोलाव तालाब के शुद्ध सरोवर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि यह डेढ़ सौ पहले खुदवाया गया था इसको गुंदा नाम के सेठ में खुद गया था इसलिए इस सरोवर का नाम गुन्दोलाव पड़ा।
सभी राजा महाराजाओं ने अपने समय में कई निर्माण करवाएं जो अपने नाम से चले आ रहे हैं या किसी जगह विशेषता पर उनका नाम रखा गया है। मदन सिंह जी के समय नगरपालिका का आगमन हुआ शार्दुल सिंह जी के समय, रेलवे पोस्ट का सिस्टम, सिक्के प्रचलन में आए, सोने का सिक्का यहां का बड़ा मशहूर रहा है, शिक्षा क्षेत्र में शार्दुल सिंह जी के समय शार्दुल स्कूल चिकित्सा में यज्ञ नारायण जी के समय यज्ञनारायण अस्पताल का निर्माण उनके नाम को दर्शाता है।
. चित्रकला पेंटिंग नृत्य गायन वादन के साथ-साथ अन्य आयामों को लेकर भी किशनगढ़ प्रसिद्ध रहा है।
वर्तमान में किशनगढ़ की सांस्कृतिक, साहित्यिक, धार्मिकता, के साथ-साथ व्यवसायिकता में भी हुई है आर के मार्बल से लेकर दीर्घ लघु सभी व्यापारी वर्ग ने मार्बल को ऊंचाइयों प्रदान की है और एशिया की सबसे बड़ी मंडी के नाम से किशनगढ़ की ख्याति हुई है।
कहीं रोचक तथ्य भी सामने आते हैं जो इस प्रकार है राजा सावंत सिंह जी बड़े बहादुर ,शौर्यवान ,चतुर व, बुद्धिमता ,के धनी होते हुए भी राज करते हुए उन्हें विरक्ति हुई। जो बाद में भक्ति मार्ग को अपनाकर सिद्ध नागरी के दास से संत नागरिक दास कहलाए और अपना नाम के साथ पूरे (कृष्णगढ़) किशनगढ़ को गौरवान्वित किया। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने दो दोहे बोले थे जो बड़े ही सारगर्भित हैं
यह संसार भुरट का भारा, माथे से उतराया है। बादरिया ने नागरिया को,भक्ति तखत बिठाया है।।
जहां कलह तहं सुख नहीं, कलह सुखन को सूल।
सबै कलह इक राज में , राज कलह को मूल।।
रूप सिंह जी काबुल से, झंडा फतेह कर लाया। शारजहां जद करी इनायत,चिन्ह किशनगढ़ बनवाया।
बाकी की बातें मैंने कविता में लिखने का पूरा प्रयास किया है विशेष मैं यह है कि हम सभी का दायित्व है कि हम सब इस नगर को स्वच्छ रखें इसकी प्रतिष्ठा को आगे लेकर चले नगर परिषद भी इस कार्य में मन खोल करके अपना कार्य करें ।
जय हिंद
जय किशनगढ़
जय राजस्थान
कवि दामोदर दाधीच
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