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२ ) शुरुआत
सफर कि शुरुआत जन्म से ही होती है. बच्चा जब जन्म लेता है,तो सबसे ज्यादा खुशी माँ को होती है. बच्चे को देखते ही वो सारे कष्ट भूल जाती और उसे unconditional प्यार करती है. उसकी हर activity पर माँ को बडा नाज होता है. देखते हैं चलो सफर का ये पहला पडाव. साथीयों, सुनिये एक माँ के दिल की बात ! क्या कहती है ये अपने बेटीसे. फ्रेंड्स ! एक बेटी तो हर घर में जरूर होनी चाहिये ! है ना ? इसीलिये मैने बेटी की माँ को इस कविता का character चुना है ! आप की क्या राय ?
एक दिनकी बात है,
भगवानने मुझसे पूछा,
बोल तुझे क्या चाहिये?
बेटी, या फिर बेटा?
मै तो खुशीसे झूम उठी
सोचा नहीं पलभर भी
बोला, हे भगवानजी !
बेटा हो या फिर बेटी
गोद में मेरे डाल दो खुशी
जिसे सफर कराउं पकडकर उंगली
भगवानजी ने मेरी सुन ली
मेरी सूनी गोद भर दी
जैसे ही तेरी आहट मिली
सूनी कोखमें मेरी
दिनमें सपने देखने लगी
मेरी तो जिंदगी बदल गई
दिन-रात बस्स सोचती ही रहती
मन में बेटी की चाह थी
नन्हे परी की ख्वाईश थी
प्रभू नें वो मुराद पूरी कर दी
तेरे पैदाईश के साथ साथ
और भी एक जन्म हुआ
मुझमें बसे माँ का
तेरे साथही जन्म हुआ
घरमे पडते ही कदम तेरे
तरक्कीही होती रही
लाडो,तूने तो मेरी जिंदगी
खुषीयोंसे भर दी
लडखडाते कदमोंसे
चलना तूने शुरु किया
छोटी छोटी बाहोंसे
जब पल्लू पकड लिया
मेरा दिल पूरी तरह
ममता से भर गया
मैनें तो अपने आपको
सातवें आस्मानमें पाया
अब बेसब्री ये होने लगी मुझे
तेरी उंगली पकड करके
कब स्कूल ले जाऊं तुझे
और,पाठ सिखाऊं दुनियादारी के
संस्कारों के गहनों से
साजाउं मै तुझे
हर एक परिस्थिती से
जूझना सिखाऊं मै तुझे
लाडो ! तू तो है छाया मेरी
तुझमें बसती है जान मेरी
चलो शुरु करते हैं तैय्यारी
जिंदगी के सफर की, तेरी
आऐंगी जब मुष्किलें
सफर ये करते करते
माँ-पापा तेरे साथ हैं
ये भूलना नही कभी भूलके
सफर में माँ-पापा साथ हैं
भूलना नही भूलके
सफर में माँ-पापा साथ हैं
भूलना नही भूलके